ग़ज़ल
हम बच्चों को जो व्यवहार सिखाएंगे
बच्चे पीढ़ी दर पीढ़ी दोहराएंगे
हाँ सारी दुनिया में वैसा ही होगा
हम घर में जैसा माहौल बनाएंगे
चाहत नफ़रत अपनापन बेग़ानापन
जो देंगे दुनिया से वो ही पाएंगे
मैं ही अपना दर्द ज़बां पर लाया तो
मेरे अपने किसको दर्द सुनाएंगे
फैंके टुकड़े खाने से तो बेहतर है
हम केवल पानी पीकर सो जाएंगे
जिनको भय या लालच है वे मौन रहें
हम तो कवि होने का फ़र्ज़ निभाएंगे
मेरा चेहरा भी घूमेगा आँखों में
जब जब मेरे गीत लबो पर आएंगे
— सतीश बंसल