लघुकथा

जैसे को तैसा

महीनों की उदासी के बाद आज छोटे-से बच्चे आलोक का चेहरा प्रसन्नता के प्रकाश से आलोकित हो रहा था. वह चित्रकार था और उसके एक चित्र ने तो धूम मचा दी थी. उसे प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जाना था. सम्मान पत्र हासिल करते समय उसे दो शब्द बोलने के लिए कहा गया.
“कलाकार हो या अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति, अक्सर कुछ-न-कुछ ऐसी-वैसी बात उसे सुननी ही पड़ती हैं. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मेरे मायूस होने से पहले ही पापा जी ने कबीर जी का दोहा- “निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय” याद दिलाया. तभी मुझे कुछ दिन पहले पढ़ी हुई एक कथा याद आ गई, जिसमें बताया गया था कि जरूरत पड़ने पर “जैसे को तैसा” व्यवहार करना भी उचित है.”
मैंने ऐसा ही करने का मन बना लिया. अनर्गल बोलने वाले एक व्यक्ति को उसी की भाषा में जवाब दिया और फिर वह तो क्या अन्य व्यक्ति भी सतर्क हो गए. मेरे मन में वीरता का आलोक जो हो गया था. उसी दौरान “जांबाज रणबांकुरे” शीर्षक वाले चित्र का सृजन हुआ. इस चित्र का सम्मान जांबाज रणबांकुरों का सम्मान है. मैं इस सम्मान के लिए प्रशासन और आप सबका बहुत-बहुत आभारी हूं.”
आलोक के मन में वीरता के इस आलोक से सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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