गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सभी झूमते और गा कर चले हैं।
खुशी आज हम तो मना कर चले हैं।।

इधर आँख कोई उठाये न अब।
कसम फोड़ने की उठा कर चले हैं।।

अगर दम बहुत है अभी सामने आ।
बड़े साहसी हम बता कर चले हैं।।

यही देश अब तो इबादत हमारी।
सभी शीश देखो नवा कर चले हैं।।

वतन के लिये ख़ून हम स दें।
क़फ़न आज सिर पर बँधा कर चले हैं।।

बने आज फौलाद सैनिक सभी ही।
सभी देख लो मुस्कुरा कर चले हैं।।

शहीदो नमन आज करते सभी को।
अभी दीप सब ही जला कर चले हैं।।

वतन ये हमारा सदा ही रहेगा।
( वतन के लिए सिर कटा कर चले हैं।। )

किया अब वतन को सभी के हवाले।
सभी फ़र्ज़ हम तो निभा कर चले हैं।।

अभी जन्म सौ ले यहाँ आ सकेंगे।
यही बात सबको जता कर चले हैं।

मुहब्बत सदा ही वतन पर लुटाई।
तिरंगा कफन हम बना कर चले हैं।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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