उफ! यह कैसी विडम्बना!
“माँ, छोटा कब से रोये जा रहा है। लो इसे।”
“अरी बडकी, संभाल उसे। मुझे काम पर जाना है। देर हो गयी तो मुकादम आधे पैसे काट देगा।”
जब से लाखन को लकवा मार गया है, घर परिवार का जिम्मा लक्षुमी ने बडी शिद्दत से उठाया है। दवा दारू का खर्चा बढ़ गया है। छोटे को और बडकी को भी आजकल भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। वह बडकी को कैसे भेजे प्रशाला? बड़की घर में रहती है तो बाबा और छोटा, दोनों को संभाल लेती है। बाबा को दवा देना, छोटे को खाना खिलाना, घर का छोटा-बड़ा काम निपटा लेती है।और ऐसे भी पढकर कौनसी अफसर बनेगी? न काम मिलेगा, न मजदूरी करेगी। मन ही मन सोचती वह भागती हांफती अपने काम पर पहुंचती है।
” आ गई महारानी। मौत आती है काम करते।”
रोज की तरह मुकादम चिल्लाये जा रहा था। गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर गरज की मारी थी वह। बस तिलमिलाकर रह गयी।
इधर लाखन जब भी अपनी प्यारी गुडिया को घर के काम करते देखता, आँखों से आँसू बहने लगते।
“हे प्रभो, मेरी गुडिया को खुश रखना।”
वह उसे खूब पढ़ाना चाहता था। लेकिन अपाहिज बनकर लाडो पर बोझ बन गया है।
“उफ! ये कैसी विडम्बना है प्रभु। मैं क्या करूं? मेरा हंसता खेलता घर-परिवार गमगीन है। खेलने की, पढने की उम्र में मेरी बच्ची चौका बर्तन कर रही है।”
छोटे को रोता बिलखते छोड लक्षुमी को काम पर जाना पडता है।
“प्रभो, क्या ऐसे होगा? पडोस वाली दीदी कह रही थी, लकवा ठीक हो सकता है। बशर्ते दवा समय पर लेनी होगी। काश ऐसा हो।
मेरी बडकी को मैं खूब पढाऊंगा। छोटे को भी।
सवा किलो प्रसाद चढाऊंगा प्रभु। लखन सपने सजा रहा था,
कि थकी हारी लक्षुमी घर आकर धम्म से बैठ गयी।
” क्या हुआ माँ? लो पानी पी लो।”
छोटे को उसकी गोदी में देकर बडकी घर का काम करने लगी।
” बडी हो रही है बडकी। रूप भी निखर रहा है।” लाखन से दबी आवाज में लक्षुमी कहती है।
“कही मुकादम की नजर उसपर न पड जाये।”
मन ही मन घबरा रही है वह।
आज मंगला की बेटी साथ आयी थी तो कैसे घूर-घूरकर देख रहा था वह नीच।
गाली देकर भी क्या ही होगा? पापी पेट के लिए चुप रहना होगा। कोरे भाषण बाजी से पेट तो नहीं भरता।
आंसू भी अब सूख गये है उसके।
” हे प्रभु! मेरे बच्चों का ध्यान रखना।”
आस्था और श्रद्धा से प्रभु जी से अर्चना करती छोटे को सुलाते सुलाते वह भी सो जाती है। बडकी प्यार से माँ को फटी चादर ओढाती है और खुद भी माँ से लिपटकर वही सो जाती है।