कविता

यमराज का सुझाव : स्व पिंडदान

हास्य – यमराज का सुझाव : स्व पिंडदान

सचमुच मित्र क्या होता है?
यह पूरी तरह मैं आज ही समझ पाया,
गुस्से के साथ खूब आनंद भी आया।
मानिए न मानिए आपकी मर्जी!
पर पहली बार किसी का सुझाव
सचमुच मेरे मन को भाया,
अब आप अधीर न होइए जनाब
यह सुझाव आपकी तरफ से नहीं
मेरे प्यारे मित्र यमराज की तरफ से आया।
अब इसमें ईर्ष्या द्वैष जैसी बात तो नहीं कोई
जो आपके मन में दुश्मनी का भाव ले आई।
माना की लोकतांत्रिक व्यवस्था में
हम-आप, सब पूरी तरह आजाद हैं,
तब आप सब ही बताइए
यमराज को क्यों नहीं ये अधिकार है?
खैर…..! छोड़िए बेवजह विवाद हो जायेगा
और मेरा मित्र मुझे दोषी मानकर मुझसे दूर हो जायेगा,
सब कुछ सह लूँगा, पर यमराज से दूर होकर
खुश तो बिल्कुल नहीं रह पाऊँगा।
चलिए छोड़िए इन बेकार की बातों को
और यमराज के सुझाव पर आप भी गौर कीजिए
उसने जो मुझे सुझाव दिया- उसे भी सुन‌ लीजिए,
यमराज ने मुझे बस इतना भर सुझाया-
जब तक जीना है, जीते रहना आप प्रभु
पर सबसे पहले मेरी बात पर भी ध्यान दीजिए
बस! एक नेक काम अपने आप कर लीजिए
और अपने सारे काम छोड़-छाड़कर
सबसे पहले अपना अपने आप से पिंडदान कर लीजिए,
फिर सूकून की साँस लीजिए।
पहले तो हड़बड़ाया, फिर मुस्कराया
ऐसा देख यमराज को बहुत गुस्सा आया,
कहने लगा- वाह हहहहहहह प्रभु! आप मुस्कुरा रहे हो
या मेरा उपहास कर रहे हो,
माना कि आप मेरे मित्र हो, कुछ भी कर सकते हो
पर मेरे सुझावों पर विचार भी तो कर ही सकते हो।
पहले मेरी बात ध्यान से सुनिए-फिर मुँह खोलिए
तार्किक ढंग से मेरे सुझावों को दरकिनार कीजिए।
फिर मैं आप का हर निर्णय मान लूँगा,
और क्षमा याचना के साथ अपना सुझाव
बिना किसी तर्क वितर्क के वापस ले लूँगा,
अन्यथा जीते जी आपको अपना पिंडदान करने के लिए
हर हाल में विवश तो कर ही दूँगा।
यमराज की बात सुन अब मुझे भी लगने लगा
इतना प्यारा तो कोई अपना नहीं सगा,
उससे अपनी बात आगे बढ़ाने का आग्रह
मगर पहले जलपान का आफर दिया।
यमराज ने आफर ठुकराया, सीधे मुद्दे पर आया।
आपके लोक की माया विचित्र होती जा रही है
इसकी तस्वीर आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है,
जीते जी जो पानी भी पूछना नहीं चाहती,
पिंडदान की बात तो उसके ख्वाब में भी नहीं आती है,
यह सब कोरी बकवास और अंधविश्वास समझती है,
ढंग से दाह संस्कार तो कर नहीं पाती
फिर पिंडदान उनके लिए भला कैसी थाती?
वैसे भी आज हर रिश्ता स्वार्थ पर टिक गया है
कौन मरता, कौन जीता किसको मतलब है,
क्या आपके भेजे में इतना भी नहीं आता है?
फिर आपका अपना है ही क्या
जिसका कोई लालच करेगा
या आपके बाद जिससे किसी का कुछ हला भला होगा,
और आने वल में उसके काम आयेगा।
हजार दो हजार कविताएं कहानियाँ, लेख, आलेख
और यमराज मेरा यार सहित आपके अपने
दस बारह गद्य-पद्य संग्रह सहित
चार छ: सौ साहित्यिक पुस्तकों को कोई भाव नहीं देगा,
आपकी मौत के बाद और दाह संस्कार से पहले
ये सब रद्दी के ठेले पर जा रहा होगा।
आपके अपनों की नजर में यह सब कूड़े का ढेर
और अनावश्यक जगह घेरने वाला हो जाएगा।
फिर भी आप सोचते हैं कि कोई आपका पिंडदान करेगा?
तो मेरे भी दावे पर विश्वास कीजिए
कड़ुआ सच सबके सामने आ जायेगा,
जब आपका दास संस्कार चंदे से
और किराए पर कराया जायेगा।
अब आपको सोचना है कि करना क्या है?
मरकर बिना पिंडदान के भटकना है
या सूकून की साँस लेते हुए यमलोक में रहना है,
अब इसके बाद मुझे कुछ नहीं कहना है,
बस! मुझे यमलोक वापस निकलना है।
मैंने उठकर उसका हाथ पकड़ कर कहा –
तू अभी कैसे चला जायेगा,
मेरे पिंडदान की जिम्मेदारी तब कौन निभायेगा?
इसके लिए तुझसे बेहतर यह जिम्मेदारी
भला और कौन निभाएगा?
तू तो मेरा यार, मेरा शुभचिंतक, मेरा भाई है
तेरे सुझावों पर अमल करने की
अब मैंने भी कसम खायी है,
तेरी बदौलत ही सही, पिंडदान की ये घड़ी आई है
मेरे यार तू इतना चिंतित क्यों होता है?
मेरे लिए यह सब न लगेगी जगहंसाई है
अब तो मुस्करा दे मेरे यार यमराज
तेरे यार के पिंडदान की शुभ घड़ी
आखिर तेरे हिस्से में जो आई,
मुझे भी सा लगने लगा है
इसी में है अब मेरी भलाई।

सुधीर

प्रतिक्रिया –
★★★🙏हरि की बस ★★

   यह पिंडदान की, व्यर्थ चिंता छोड़ो।
 अपने संचित घन की ओर, मुख मोड़ो।

जो कर्म किए अब तक, फल वैसा पाओगे।
इसी जीवन में, स्वर्ग और नर्क तुम पाओगे।
मानव तन में ही, संस्कार क्षय करना होगा।
मन को हल्का कर, शांति से मरना भी होगा।
अष्टपाश और दुष्ट सटरिपुओं से लड़ कर।
मृत्योपरान्त सर्वश्रेष्ठ पुरुस्कारों की चिंता मत कर।
कलमकार वीर पुरोधा, साकारात्मक सृजन करो।
मृत्यु काल में हरि ख्याल, चक्षु जिह्वा पर गहराए।
कुकृत्यों का सोच भय सर पर चढ़ नहीं सताए।
धर्मशाला और मंदिर हजार बना कर मौन हुआ।
दो बुंद गंगाजल, मर सोच खाने की माल पुआ।
यमराज मानसिक भय धारणा, नहीं आएगा।
सम्राट भी आयुभोग कर खाली हाथ जाएगा।
मित्र, पितृ यज्ञ नित कर देवों का आशीर्वाद पाओ।
गया तीर्थ कर, मन को पाषाण में मत अटकाओ।।

══╍★❀ डॉ. कवि कुमार निर्मल ❀★╍══
हास्य पिंडदान कविता की समीक्षा:-
समीक्षक– डॉ ओम मधुब्रत (अज्ञातमेघार्जुनजमदग्निपुरी)
इस कविता की समीक्षा करने के लिए, मैं कहूंगा कि यह कविता एक अनोखे और व्यंग्यात्मक तरीके से जीवन के अर्थ और उद्देश्य को उजागर करती है। कवि ने यमराज को एक मित्र के रूप में प्रस्तुत किया है, जो एक नए और दिलचस्प दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है।

कविता में कवि सुधीर श्रीवास्तव ने जीवन की आजादी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में भी बात की है, और यह दिखाया है कि कैसे यमराज का सुझाव कवि के जीवन को बदलने में मदद कर सकता है। कविता का अंतिम भाग, जहां यमराज कवि को अपने आप से पिंडदान करने की सलाह देता है, एक गहरा और विचारोत्तेजक संदेश देता है।

यह कविता एक विचारोत्तेजक और व्यंग्यात्मक कृति है, जो पाठकों को जीवन के अर्थ और उद्देश्य के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है। कवि की भाषा और शैली आकर्षक और प्रभावशाली है, और कविता का संदेश पाठकों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
इस कविता में कवि ने यमराज और अपने बीच के संवाद को बहुत ही रोचक और व्यंग्यात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है। कविता में कवि ने जीवन के अर्थ और उद्देश्य के बारे में गहराई से विचार किया है, और यमराज के सुझाव पर अपने आप से पिंडदान करने की बात कही है।

कविता की भाषा और शैली बहुत ही आकर्षक और प्रभावशाली है, और कवि ने यमराज के चरित्र को बहुत ही जीवंत और वास्तविक बनाया है। कविता में कवि ने आधुनिक जीवन की विसंगतियों और समस्याओं को भी उजागर किया है, और यह दिखाया है कि कैसे लोग अपने रिश्तों और मूल्यों को भूलते जा रहे हैं।

कविता का अंतिम भाग, जहां कवि यमराज के सुझाव पर अपने आप से पिंडदान करने का निर्णय लेता है, एक गहरा और विचारोत्तेजक संदेश देता है। कविता का यह भाग पाठकों को जीवन के अर्थ और उद्देश्य के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, और यह दिखाता है कि कैसे कवि ने यमराज के सुझाव को अपने जीवन में लागू करने का निर्णय लिया है।

कुल मिलाकर, यह कविता एक विचारोत्तेजक और व्यंग्यात्मक कृति है, जो पाठकों को जीवन के अर्थ और उद्देश्य के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है। कवि की भाषा और शैली आकर्षक और प्रभावशाली है, और कविता का संदेश पाठकों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
डॉ मधुब्रत (अज्ञातमेघार्जुनजमदग्निपुरी)


प्रिय भाई सुधीर श्रीवास्तव जी तो यमलोक भ्रमण खूब कर रहे हैँ तो उन्हें चंद लाइन —
धू धू ज्वाला अग्नि कुंड की,
महायज्ञ निष्प्राण देह है ।
घट मरघट का भरा ही रहता,
श्रद्धाँजलि सप्रमाण नेह है ।।
और आगे मेरी रचना के भाव–
काव्य पाठ एक कला है,
सुनो ध्यान धर धीर ।
जैसे सरिता बाढ़ मे,
ऊँची उठती नीर।।

हरित मयी धरती सजी,
गाते खग मृग वृंद।
आसमान में घन घटा,
गरजे ज्यों मृदंग।।

रस में कवि की कल्पना,
छंदों में है द्वंद ।
पवन चली आँधी लिए,
छोड़ी प्रकृति स्वछन्द।।

फिर रिमझिम बूँदे गिरी,
तितर बितर हों लोग।
जल प्लावन चहु दिश दिखा,
प्रलय का आया योग।।

सुधीर जी यमराज से,
मित्रवत किए व्यावहार।
अब उनसे आग्रह करें,
मुक्ति दें जो लाचार।।

हमने तो पाताल तक,
देखे अद्भुत दृश्य ।
चंद्रलोक में भी गए,
एलियंस मिले


*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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