कविता

दीवानी

मैं तेरी दीवानी हूँ, हां मैं तेरी दीवानी हूँ ,
कभी खुद से कभी सबसे बेगानी हूँ ।
रोके कोई आज मुझे दिल लगाने से,
सांसे भी खत्म न ही ऐसी दीवानी हूँ।
रोक सके कोई मुझे तुमसे मिलने से,
ऐसी किसी में हिम्मत नहीं मैं तेरी दीवानी हूं।
लाख जमाना दुश्मन बने पाँव में जंजीर डाले ,
सारे जंजीरों को तोड‌कर तुझसे मिलने आईं हूँ।
चाँद कहता है मुझसे तुम मदमस्त हो,
चाँद को क्या पता मैतेरी दीवानी हूँ।।

— गरिमा लखनवी

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384

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