गुमनाम वीर बलिदानी के नाम
(हमारे गुप्तचर जो विदेश में हमारे देश के लिए बलिदान हो जाते हैं उन के प्रति)
नमन मेरा उस सेनानी को जो गुमनाम सदा रहते
देश की खातिर रोज रोज जो तिल तिल कर जीते मरते
कब रहती परवाह उन्हें है अपने घर परिवार की
चुप चाप मिट जाते हैं वे नाम उजागर कब करते।
उन के तन पर कोई वर्दी कभी नहीं पहनी जाती
न ही तो पहचान कोई भी सरकारों में हो पाती
वे तो केवल चुप चाप बलिदान स्वयं हो जाते हैं
कभी कभी तो लाश भी उन के घर तक भी न आ पाती।
ऐसे बलिदानी वीरों का नाम कोई न होता है
न ही कभी समारोहों में कभी जिक्र भी होता है
कौन जानता है उन को तुम मुझ को जरा बता दो
जो मर जाते हैं चुपचाप और नाम पता न होता है।
वे पहचान छिपाये रहते अपने और परायों से
बन जाते हैं कुछ के कुछ वे छोड़ के अपने आपे को
कितने नाम बदलते दिन में रात में कुछ हो जाते हैं
ऐसे बलिदानी वीरों के किस्से कहाँ कभी सुन पाते हैं।
अपनी धरा छोड़ माँ जैसी दूर कहीं बस जाते हैं
घर वाले भी मौन साध कर बस चुप ही रह जाते हैं
कहाँ गया है पता नहीं है उस के अपने प्रियजन को
बिना कमाए नाम स्वयं का ,चुप बलि चढ़ जाते है।
ऐसे बलिदानी वीरों को शीश मेरा झुक जाता है
अपने आप स्वयं मेरा मस्तक उन को झुक जाता है
मन करता है दो आँसू की बूँद उन्हें अर्पित कर दूँ
पर उनका कर्तव्य मार्ग क्यों आंसू से बाधित कर दूँ।
— डॉ. वेद व्यथित