एक अर्जी मुनीर के नाम
हे मुनीर बस एक बार, तू वार हमारे ऊपर कर दे।
बम,बारूद और तोपों की, धार हमारे ऊपर कर दे।
जोह रहे हैं वर्षों से, कोई तो सीमा पार करे
पहले हमला करने खातिर सेना को तैयार करे
पहले पहल चलाए गोली, हम पर अत्याचार करे
जनम जनम से दिल में मेरे सपने को साकार करे
युद्ध-प्यार में सब जायज़, ये प्यार हमारे ऊपर कर दे
हे मुनीर बस एक बार, तू वार हमारे ऊपर कर दे
ढूंढ़ रहे हैं मौका बाबू, फिर जज़्बात बताएंगे
शेखचिल्लियों की सेना को हम औकात बताएंगे
पिछली बार कदम रोके थे, अबकी रुक न पाएंगे
पेशावर, लाहौर,करांची पर झंडा फहराएंगे
इतनी छोटी सी अर्जी उपकार हमारे ऊपर कर दे
हे मुनीर बस एक बार, तू वार हमारे ऊपर कर दे
कसम इंदिरा गांधी की ऐसा कोहराम मचाएंगे
बटन सरीखी आंखों वाले भी कुछ काम न आएंगे
चार-चार टुकड़े करवाकर फिर गोदाम बनाएंगे
‘पहलगाम का बदला’ पूरा पीओके ले आएंगे
द्वेष घृणा से भरा हुआ जो जार हमारे ऊपर कर दे
हे मुनीर बस एक बार, तू वार हमारे ऊपर कर दे।
— सुरेश मिश्र