आगाज़ ऑपरेशन सिन्दूर
आतंक के आकाओं तुम कल भी नहीं थे दूर,
टूटा सब्र का बांध आगाज़ ऑपरेशन सिन्दूर।
कितनी बजाओगे ईट से ईट कुछ न बिगड़ेगा,
दृढ़-निश्चय किया है जवाब पत्थर से मिलेगा।
अब निर्दोषों का वध होते हिंदुस्तान न देखेगा,
छुपों कहीं भी देश पाताल से ढूंढ़ निकालेगा।
आतंक के आकाओं तुम कल भी नहीं थे दूर,
टूटा सब्र का बांध आगाज़ ऑपरेशन सिन्दूर।
हमने भी सुनी थीं वहाँ गोलियों की आवाज़,
खुशियों की स्वर लहरी गूंज रहीं बजते साज़।
आज रिश्तों की ना बात करें रूदन की गाज़,
ऐ नामांकूलों निहत्थों पर वार आती न लाज़।
आतंक के आकाओं तुम कल भी नहीं थे दूर,
टूटा सब्र का बांध आगाज़ ऑपरेशन सिन्दूर।
अब अपनों पर आन पड़ी तभी समझ आया,
आज कहा मैं भी मर जाता, क्यों ज़ूल्म ढाया।
न जाने तुमने कितनों का हैं ऐसे खून बहाया,
देखों ज़ालिमों! अपनों के लहू से ख़ुद नहाया।
— संजय एम तराणेकर