द्रुम दल मही सजाना है
🌹 दुम दल मही सजाना है 🌹
धरणी का श्रंगार विटप हैं, द्रुम दल मही सजाना है।
भू संरक्षण करना होगा जीवन अगर बचाना है।
यही महीरुह लहरा करके घन को पास बुलाते हैं,
घनन-घनन घन वर्षा करके हरियाली भर जाते हैं,
नीर धरा को दे कर जलधर कहता यही खजाना है।
धरणी का श्रंगार विटप हैं, द्रुम दल मही सजाना है।
बरगद पीपल नीम लगाकर वायु प्रदूषण कम करलो,
पाकड़ गूलर इमली सिंघड़ी मृदा क्षरण को कम करलो,
अमलताश गुलमोहर लगाकर पथ को सरस बनाना है।
धरणी का श्रंगार विटप हैं, द्रुम दल मही सजाना है।
पंक्षी डालों पर फिर चहके मोर पंख फैला डोले,
पपिहा टेर लगाए पिऊ की कोयल कुहु कुहु कुहके,
वसुधा का श्रृंगार न उजड़े ऐसा कदम उठाना है।
धरणी का श्रंगार विटप हैं, द्रुम दल मही सजाना है।
जंगल जल जमीन जीवन धन खुशियों की सौगात ये,
प्राण वायु उत्सार्जित होगी स्वच्छ रखो सौगात ये,
इनका संरक्षण करना है इसको ही अपनाना है।
धरणी का श्रंगार विटप हैं, द्रुम दल मही सजाना है।
भू संरक्षण करना होगा जीवन अगर बचाना है।
©®मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”✍🏾