दोहा- कहें सुधीर कविराय
धार्मिक
आदि शक्ति मैया सदा, मुझ पर भी दो ध्यान।
बस थोड़ी कर दो कृपा, हो जाए कल्यान।।
भोले बाबा आप ही, करिए कोई जुगाड़।
मैया कर देंगी कृपा, हो जाएगा कल्याण।।
दुर्गा मैया की हो रही, भक्तों जय जयकार।
बरस रही माँ की कृपा, ले लो हाथ पसार।।
हाथ जोड़ हनुमंत से, विनय करें यमराज।
प्रभो बुढ़ापा आ गया, नहीं हो रहा काज।।
मुश्किल में यमराज जी, फँसे हुए हैं आज।
हनुमत जी रक्षा करें, चित्रगुप्त जी काज।।
यमराज
उत्सव जीवन-मृत्यु है, करते हो क्यों भेद।
कहते हैं यमराज जी, करो व्यक्त सब खेद।।
आये थे यमराज जी, लेने मुझको आज।
चलो हमारे संग में, किया बहुत है काज।।
मैय्या के दरबार में, आये हैं यमराज।
हाथ जोड़ विनती करें, रखिए सबकी लाज।।
हाथ जोड़ यमराज जी ,खड़े राम दरबार।
सबसे पहले कीजिए, प्रभु मेरा उद्धार।।
सुबह-सुबह ही आ गये, द्वार यार यमराज।
चले अयोध्या धाम को, छोड़छाड़ सब काज।।
आज मित्र यमराज ने, किया अनोखा काम।
बिना कहे ही डाल दी, अर्जी मेरे नाम।।
इतना खुश पहले कभी, कब थे प्यारे मित्र।
क्या तुमने खींचा नया, सिया राम का चित्र।।
खुशी-खुशी यमराज जी, आज पधारे द्वार।
बड़ी शिकायत आपकी, किया राम दरबार।।
विनय करूं यमराज से, शीश झुका कर आज।
आप बचाओ मित्र से, बिगड़ रहा मम काज।।
रघुबर के दरबार में, पहुँच गये यमराज।
मुझे शरण अपनी रखें, देकर नूतन काज।।
महाकुंभ में आ रहे, प्रिय कविवर यमराज।
आना हो तो आइए, अपना बस्ता साज।।
मिलकर हम सब करेंगे, अपने मन की बात।
मस्ती अरु हुड़दंग में, बीत जाएगी रात।।
चित्रगुप्त जी कह रहे, सुनो मित्र यमराज।
बिगड़ रहा समाज क्यों, मुझे बताओ आज।।
विविध
चादर मैली आपकी, फिर भी बड़ा गुरूर।
हमको है इतना पता,आप बड़े मगरूर।।
आज कीजिए आज तो, नारी का सम्मान।
आज यही सबसे बड़ा, मान लीजिए दान।।
चलते फिरते हम सभी, करते ऐसा काम।
और मुफ्त में हो रहे, नाहक ही बदनाम।।
आडम्बर है हो रहा, देखो चारों ओर।
छिपकर बैठे देखिए, रंग – बिरंगे चोर।।
वे घमंड में चूर है, बाँट रहे गुरुज्ञान।
और गर्व से स्वयं ही, अपना करें बखान।।
जीवन की परीक्षाओं से , कहाँ तक भागोगे।
आज हो रहे हार तो, कल जीत जाओगे।।
राजा वो होता स्वयं, सत्पथ जिसकी चाह।
रंक वही होता बड़ा, रहता लापरवाह।।
प्रातःकाल की नव किरणें, देती हैं संदेश
मन में अपने न रखो, कभी किसी से द्वेष।।
प्रणय पटल पर आपका, स्वागत है श्रीमान।
आप हमारे साथ हैं, बढ़ता मेरा मान।।
नियमों का पालन करें, मत करिए अभिमान।
वरना दुनिया जानती, कितना किसको ज्ञान।।
सरयू तट पर सज गया, कविता पाठ का मंच।
चाय नाश्ता संग में, मिलकर होगा लंच।।
प्रभु राम दरबार में, कविगण आये आज।
सभी अवध के धाम में, अपने सुर अरु साज।।
कविता पढ़ने आ गये, आप सभी हम आज।
कृपा राम जी की मिले, पूरण हों सब काज।।
स्वागत वंदन आपका, करुँ आपका मित्र।
मिल कर खींचे हम सभी, नव कविता का चित्र।।
नियम तोड़ना काम है, मेरे प्यारे मित्र।
चाहे जैसा खींच दो, आड़ा टेढ़ा चित्र।।
धक्का देने के लिए, सदा रहो तैयार।
मान लीजिए सूत्र ये, जीवन का उद्धार।।
सभी स्वयं में श्रेष्ठ हैं, जान रहे हम आप।
फिर क्यों ईर्ष्या द्वैष का, करते रहते पाप।।
शीश झुकाता आपको, दया करो प्रभु आप।
नाहक दुःख क्यों दे रहे, लेने को अभिशाप।।
कहते हैं यमराज जी, छोड़ो जीवन मोह।
आखिर सहना आपको, कल में मित्र विछोह।।
कलम उठाओ जब कभी, लिखना मोहक भाव।
भाव नहीं ऐसे लिखें, जो जन-मन दे घाव।।
संयम से रहिए सभी, सबको दीजै प्यार।
हर प्राणी का हो यही, जीवन का आधार।।
बड़े प्यार से ठग रहे, अब अपने ही लोग।
फिर भी कहते आप हैं, ये तो है संयोग।।
जिसको कहते गर्व से, अपने हैं ये लोग।
छुरा पीठ में घोंपते, बने वही हैं रोग।।
हमने जिनको भी दिया, खूब मान-सम्मान।
आज वही हैं दे रहे, बदनामी का दान।।
नहीं किसी के आजकल, मत आना तुम काम।
गाँठ बाँध लें आप सब, होगे बस बदनाम।।
कुछ लोगों को है चढ़ा, नाहक बड़ा गुरूर।
चर्चा उनकी हो रही, आदत से मजबूर।
काहे इतना चूर हो, आप नशे में यार।
संग तुम्हारे खड़े हैं, साथी केवल चार।।