कविता

सत्य खबर खोज रहे

मलबों से अटा पड़ा है सारा शहर,
गांव,पनघट,गली-गली,डगर-डगर,
ये मलबे है झूठी खबरों के,
एक रंग में दिखना चाहते चितकबरों के,
इनसे परेशान है
सारा शहर, गांव,
समाचारों में नहीं सुकूनी छांव,
ए सी की ठंडी कमरों में बैठ
बनाते हैं गर्म खबरें,
जो चाहते हैं यहां वहां दिखे कब्रे ही कब्रे,
ये चलाते रहते हैं अपना एजेंडा,
सर्वस्व निगलने को तैयार बैठी
नापाक खबरों का एनाकोंडा,
इन्हें न लाज न शर्म,
अपनी झूठी बातों को जबरन मनवाना
रह गया एकमात्र इनका धर्म,
पूरा मिटा डाल रहे दुश्मन देश,
कहां से आयी इतनी हिम्मत
बरगला रहे ये दलाल
धर के खबरची का वेश,
और सारे सतर्क नागरिकों को कह रहे
खबर है पूरी तरह अकाट्य,
इधर ढूंढना पड़ रहा
खबरों की मलबों से सत्य।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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