सामाजिक

लावारिस मिलती नवजात बच्चियाँ: झाड़ियों से जीवन तक

हरियाणा के हिसार जिले के अग्रोहा में सतीश डूडी ने एक नवजात बच्ची को गोद लेकर ममता और इंसानियत की मिसाल पेश की। यह बच्ची जन्म के कुछ घंटों बाद झाड़ियों में लावारिस पाई गई थी। सतीश का यह साहसिक कदम समाज के उस निष्ठुर चेहरे को बेनकाब करता है जो बेटियों को बोझ समझता है। यह कहानी बताती है कि ममता का रिश्ता खून से नहीं, अपनाने से होता है। यह कदम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की असली आत्मा को दर्शाता है और समाज को एक नई सोच की प्रेरणा देता है।

हरियाणा के हिसार जिले के अग्रोहा में हाल ही में एक दिल को छू लेने वाली घटना सामने आई है। गांव कुलेरी निवासी सतीश डूडी ने उस नवजात बच्ची को गोद लेकर इंसानियत और ममता की एक अनोखी मिसाल पेश की, जिसे जन्म के कुछ ही घंटों बाद उसके माता-पिता ने झाड़ियों में छोड़ दिया था। यह घटना न केवल एक मासूम जीवन को नया अवसर देने की कहानी है, बल्कि समाज की उस कठोर सच्चाई का भी पर्दाफाश करती है, जो आज भी बेटियों को बोझ समझती है।

लावारिस मिलती नवजात बच्चियाँ: एक कठोर सच्चाई
जब किसी सड़क किनारे, कूड़े के ढेर में, या किसी अस्पताल के बाहर एक नवजात बच्ची लावारिस पाई जाती है, तो यह महज एक खबर नहीं होती, बल्कि हमारे समाज के उस निष्ठुर चेहरे का आईना होती है, जिसे हम अक्सर अनदेखा करना चाहते हैं। यह केवल एक परित्यक्त जीवन नहीं, बल्कि उस मानसिकता का प्रतीक है, जो एक लड़की के जन्म को अभिशाप समझती है।

इस बच्ची को न जाने किस मजबूरी में त्याग दिया गया होगा, पर यह कहानी एक गहरी सामाजिक समस्या की ओर इशारा करती है। यह बच्ची, जिसे अपने जीवन की पहली सांसों में ही दर्द और बेरुखी मिली, शायद खुद नहीं जानती थी कि उसका जीवन किसी मसीहा की तलाश में था। लेकिन सतीश डूडी ने उसे अपनाकर दिखा दिया कि ममता का रिश्ता खून से नहीं, अपनाने से होता है।

सतीश डूडी का साहसिक कदम
अग्रोहा की झाड़ियों में मिली इस नन्ही जान के जीवन में सतीश डूडी एक मसीहा बनकर आए। उन्होंने उस बच्ची को अपनाकर यह साबित कर दिया कि इंसानियत केवल खून के रिश्तों तक सीमित नहीं होती। यह एक ऐसा कदम है, जो न केवल उस बच्ची का भविष्य संवारने वाला है, बल्कि समाज को एक नया संदेश भी देता है – कि हर बच्चा महत्वपूर्ण है, हर जीवन मूल्यवान है।

सतीश का यह कदम समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत भी है। जहां एक ओर बच्चियों को लेकर नकारात्मक मानसिकता हावी है, वहीं सतीश का यह कदम समाज को एक नया संदेश देता है – कि हर बच्चा महत्वपूर्ण है, हर जीवन मूल्यवान है। यह कदम बताता है कि ममता और अपनापन किसी खून के रिश्ते का मोहताज नहीं होता।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: असली अर्थ
सतीश का यह कदम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की वास्तविक आत्मा को दर्शाता है। जब हम बेटी को अपनाने का साहस दिखाते हैं, तब ही हम समाज में वास्तविक बदलाव की नींव रखते हैं। यह घटना हमें बताती है कि सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि कर्मों से बदलाव आता है। हमें केवल बेटियों के जन्म का स्वागत नहीं, बल्कि उनके पूरे जीवन का सम्मान करना होगा।

समाज की चुप्पी पर सवाल
यह घटना हमें समाज की उस चुप्पी पर भी सोचने पर मजबूर करती है, जहां नवजात बच्चियों को आज भी बोझ समझा जाता है। हम अपने बेटों को गर्व से पालते हैं, लेकिन बेटियों को अपनाने से डरते हैं। यह कहानी हमें बताती है कि असली साहस सिर्फ युद्ध में ही नहीं, बल्कि नन्हीं जानों को सहारा देने में भी होता है।

इस बच्ची का लावारिस मिलना समाज की उस गहरी मानसिकता का प्रतीक है, जो आज भी लड़कियों को आर्थिक बोझ, परिवार की प्रतिष्ठा पर खतरा और वंशवृद्धि में बाधा के रूप में देखती है। ‘बेटी पराया धन’ जैसी कहावतें हमारे सामूहिक अवचेतन में इतनी गहराई तक घुल गई हैं कि उनके प्रभाव से उबर पाना आसान नहीं।

समाधान की राह
समाज को यह समझना होगा कि बेटियाँ बोझ नहीं, बल्कि शक्ति और संवेदना की प्रतीक हैं। इसके लिए:

सामाजिक जागरूकता: बेटियों को समान अधिकार और सम्मान देने के लिए निरंतर जागरूकता अभियान चलाने होंगे।

शिक्षा का प्रसार: लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

आर्थिक स्वतंत्रता: महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए स्वरोजगार, प्रशिक्षण और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना होगा।

कठोर कानून: लिंग भेदभाव और नवजात परित्याग के मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।

अंतिम विचार
नवजात बच्चियों का परित्याग केवल एक व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक विफलता का प्रतीक है। जब तक हम अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे, तब तक न तो कानून सफल होंगे और न ही सरकारी योजनाएँ। हमें यह समझना होगा कि बेटी का जन्म केवल एक जीवन नहीं, बल्कि एक पूरे परिवार, समाज और देश के उज्ज्वल भविष्य की नींव है। सतीश डूडी की यह कहानी एक प्रेरणा है, एक सबक है, और एक चुनौती भी, कि हम अपने आसपास के अनचाहे जीवन को अपनाकर दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं।

— डॉ. सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: [email protected] सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh

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