व्यंग्य – आकस्मिकता
‘आकस्मिकता’ एक सौ एक प्रतिशत आकस्मिक है। वह किसी को भी इस बात के लिए संकेत नहीं देती कि वह आने वाली है। किसी को कोई पूर्वाभास भी नहीं देती ऐसा भी हो सकता है। वह किसी को सावधान भी नहीं करती कि सावधान हो जाइए मैं आने वाली हूँ। किसी मनुष्य, समाज,परिवार, देश ,प्रकृति या ब्रह्मांड के किसी भी क्षेत्र में आने वाली आकस्मिकता सर्वांश में आकस्मिक ही है।
प्रत्येक मनुष्य का जीवन आकस्मिकताओं से भरा हुआ है।आदमी शाम को अच्छा- भला खा पीकर सोता है और सुबह जब उठता है तो घर वाले देखने हैं कि वह तो पूरी तरह उठ चुका है।वह यह बताने के लिए भी नहीं उठता कि अपने उठ जाने की कहानी भी बताने लायक रहे! कभी -कभी वह पाता है कि वह बीमार है।उसे बुखार है।उसकी देह में दर्द है। उसे जुकाम है। उसे दस्त हो गए हैं। वह बोल नहीं पा रहा है। और न जाने क्या क्या हो जा सकता है;कहा नहीं जा सकता।यही सब वे अज्ञात अकस्मिकताएँ हैं,जो सदैव रहस्य रही हैं और रहस्य ही बनी रहेंगीं।
'आकस्मिकता' के अनेक पर्याय हो सकते हैं।जैसे दुर्घटना,मृत्यु,बीमारी, धी,तूफान,भूकंप,हत्याकांड,बाढ़,सुनामी,वज्राघात,गर्भाधान आदि आदि।इनके अतिरिक्त बहुत सारी अनंत आकस्मिकताएँ हैं,जिनका हिसाब-किताब रखना भी असंभव है।यदि आकस्मिकता का पूर्व में ही ज्ञान हो तो आकस्मिकता कैसी? इसीलिए इसे अनहोनी भी कह दिया जाता है।
आकस्मिकता का पूर्व घोषित कोई इतिहास है न भूगोल।यह तो अंतरिक्ष की वह पोल है,जो इधर से उधर और उधर से इधर गोल ही गोल है। इसीलिए उसका कोई आदि है न अंत है।जब तक यह सृष्टि है,आकस्मिकता भी अनंत है। अब ढूँढते रहिए आकस्मिकता का कारण और उसके विविध निवारण, पर उसका तो अस्तित्व ही है अनिवारक और बनने लायक उदाहरण।हर आकस्मिकता अपने रूप और स्वरूप में मौलिक है।सृष्टि का ऐसा कोई स्थान नहीं ,जहाँ आकस्मिकता न हो।लगता है यह आकस्मिकता ही ब्रह्म है।आम या हर खास के लिए भ्रम है। आकस्मिकता समय का कर्म है। वह समय का ही क्रम है।वह एक दुरूह पहेली है। च्युंगम की तरह चुभलाते रहिए, पर कहीं कोई रस नहीं। इस पर आदमी का वश नहीं। उस पर किसी का कोई नियंत्रण भी नहीं। आकस्मिकता की नजरों में जो हुआ है ,वही सही।
हजारों लाखों अकस्मिकताएँ नित्य निरन्तर घटती हैं। पल -पल घट रही हैं।इसीलिए इसे एक और नाम :’परिवर्तन’ से अभिहित किया जा सकता है। कोई आकस्मिकता सदा अशुभ ही हो;यह भी कोई अनिवार्य नहीं है। हाँ,इतना अवश्य है , जब कोई आकस्मिकता घटित होती है,तो चौंकाती अवश्य है।लोग कह देते हैं कि जो होता है;वह अच्छे के लिए ही होता है।यह भी सत्य ही है कि एक का भला सबका भला नहीं हो सकता।इसके रूप ही इतने वैविध्यपूर्ण हैं,कि शुभाशुभ की पहचान ही दुश्कर कार्य है। प्रकृति को कब क्या करना है,कोई नहीं जानता। सबसे बुद्धिमान होने का दावा करने वाले मनुष्य के लिए भी आकस्मिकता का रहस्य जानना असंभव है। बस यहीं आकर मानव की बुद्धि बौनी हो जाती है। वह बहुज्ञ हो सकता है;किंतु सर्वज्ञ नहीं हो सकता। सृष्टि का कर्ता क्या चाहता है; कोई नहीं जानता। यहाँ उसका ज्योतिष ,विज्ञान और गणित पूर्णतः अक्षम हो जाता है। तभी उसे परमात्मा की अनन्त शक्ति का आभास होता है।
‘आकस्मिकता’ का यह लेख भी एक आकस्मिकता का अंग है।यकायक मन में जाग्रत एक उमंग है। भावों के साथ शब्दों का उछलता हुआ कुरंग है। अपनी अभिव्यक्ति का यह भी एक रंग है। आइए हम सभी आकस्मिकता पर विचार करें। किसी भी आकस्मिकता से नहीं डरें। क्योंकि जो होना है,वह तो होना ही है। फिर डरना घबराना कैसा? बस आगे बढ़ते जाएँ समय हमें बढ़ाए जैसा- जैसा।शब्द बहुत छोटा है,किंतु बड़ा खोटा है। कहीं यह नन्हा है सूक्ष्म है,मोटा है। पर सर्वथा अदृष्ट है। आदमी को इसी बात का तो कष्ट है कि आकस्मिकता गूँगी क्यों है?मौन क्यों है? निरजिह्व क्यों है?
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’