स्वयँभू श्रेष्ठ
आज मेरे मन में एक विचार आया
क्यों ना स्वयंभू श्रेष्ठ होने का आनन्द उठाया जाये।
मैंने राय देने के लिए मित्र यमराज बुलाया
वो आया, मैंने जलपान कराया
फिर खुशी-खुशी अपना विचार बताया,
सुनकर यमराज ने अपना सिर खुजाया
और मासूमियत से फरमाया –
बड़ा सुन्दर विचार है प्रभु,
अब मुझे पक्का यकीन हो गया
कि यमराज का यार भी अब है सठियाया।
सुनकर मुझे गुस्सा आ गया,
मैंने यमराज को वापस जाने का फरमान सुना दिया।
यमराज मुस्कराया, अपना जवाब सुनाया
वापस तो मैं चला ही जाऊँगा
दुबारा बुलाओगे तो भी नहीं आऊँगा।
जब दुनिया आपका मजाक उड़ायेगी
तो मैं भी खूब मुस्कराऊँगा,
अपने चेलों से जमकर भाँगड़ा कराऊँगा।
फिर मुझे मत कहना कि तुमने यारी नहीं निभाई
स्वयंभू श्रेष्ठ होने का मतलब इधर कुँआ-उधर खाई है
यह बात पहले क्यों नहीं समझाई?
मैंने तो अपना कर्तव्य पूरा कर दिया
समय से आपको सचेत कर जगाने का
पूरा-पूरा प्रयास कर लिया है,
अब आप नाले में लोटना ही चाहते हो
तो भला मैं क्या कर सकता हूँ?
दुर्भाग्य से यारी के नाम पर
आपको विवश भी नहीं कर सकता।
वैसे मेरे पास आपकी समस्या का एकल समाधान है
दुर्घटना से बचाने का बस यही तात्कालिक प्रावधान है
जिसे मैं क्रियान्वित भी नहीं कर सकता हूँ
हाथों हाथ आपको यमलोक भी नहीं ले चल सकता हूँ।
क्योंकि! आपके सिर पर तो
स्वयं श्रेष्ठ होने का भूत सवार है,
जाने कौन-सी चली तूफानी बयार है,
जिसमें आप फँसने जा रहे हो,
बड़ा समझदार बन रहे थे
अब तो लगता है खुद ही बेवकूफ बनाने जा रहे हो,
अपनी यारी का भी ध्यान नहीं रख रहे हो।
आपका कल्याण हो, भगवान आपका भला करें,
आप स्वयंभू श्रेष्ठ हो जाओ
और रोज – रोज खूब पछताओ,
यमराज से अपनी यारी को कलंक का दाग़ लगाओ
और आँसू बहाओ।