डॉ. मुश्ताक अहमद शाह से साहित्यिक संवाद
(प्रश्न-उत्तर शैली में प्रभावशाली साक्षात्कार)
प्रश्न,
डॉ. शाह, आपकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? क्या कोई विशेष प्रेरणा रही?
उत्तर,
मेरी साहित्यिक यात्रा बचपन के दिनों से शुरू हुई। मेरे पिताजी खुद शायर थे, उनके साथ बैठकर शायरी और कविताएँ सुनना मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा थी। घर का साहित्यिक माहौल और गाँव की सादगी ने मेरी सोच को गहराई दी।
शब्दों की बगिया में गुजरा है बचपन मेरा।
एहसास को दिल के काग़ज़ पर उतारा मैंने।
प्रश्न,
आपकी लेखनी में दर्द और इश्क़ की गहराई अक्सर दिखती है। क्या यह आपके निजी अनुभवों का असर है?
उत्तर,
जी हाँ, मेरी शायरी मेरे दिल की आवाज़ है। जीवन में मिले दर्द और मोहब्बत के अनुभवों ने मेरी लेखनी को गहराई दी।
दर्द को अपने गजलों में पिरोया हमने।
हसरतों को दिल में ही दबाया हमने।
जिंदगी कश्मकश में गुजरती चली गई,
रिश्तों में उसूलों में उलझती चली गई,
बहता हुआ पानी था वो मैं किनारे का था दरख्त।
हरकतें उसकी जड़ों से मेरी मिट्टी हटाती चली गईं,
साथ रेहकर भी मैं उसको समझ न सका,
मांगता रहा मैं हाथ वो दामन छुड़ाती चली गईं,
देखिए इस आखरी शेर में “वो” का मतलब जिंदगी से भी हो सकता है और अपनी माशूका से भी, ये ही तो अंदाज़ है, शब्दों का,
मेरी कोशिश रहती है कि अपने दर्द और उम्मीद दोनों को शब्दों में ढाल सकूं।
प्रश्न,
आपके अनुसार, एक अच्छा लेखक या शायर बनने के लिए सबसे जरूरी गुण क्या हैं?
उत्तर:
सबसे जरूरी है ईमानदारी और संवेदनशीलता। अपने अनुभवों को सच्चाई से लिखना चाहिए। साथ ही, समाज और समय की नब्ज़ को समझना भी जरूरी है।
“शब्दों में सच्चाई हो,
तो हर पाठक उसे अपना समझता है।”
प्रश्न ,
ग़ज़ल में हिंदी के बढ़ते प्रयोग को आप किस रूप में देखते हैं?
उत्तर:
यह एक सकारात्मक बदलाव है। ग़ज़ल अब सिर्फ उर्दू तक सीमित नहीं रही, हिंदी के शब्दों ने इसे और व्यापक बना दिया है। इससे ग़ज़ल नए पाठकों तक पहुँची है और उसकी आत्मा और भी समृद्ध हुई है।
प्रश्न,
आप किन-किन विषयों पर लिखना पसंद करते हैं?
उत्तर:
मुझे प्रेम, विरह, जीवन के संघर्ष, सामाजिक न्याय, शिक्षा, और मानवाधिकार जैसे विषयों पर लिखना पसंद है।
“इश्क़ की बात हो या समाज की,
कलम हर दर्द को आवाज़ देती है।”
प्रश्न,
आपकी लेखन प्रक्रिया क्या है? प्रेरणा कहाँ से मिलती है?
उत्तर,
मेरी लेखन प्रक्रिया विचारों को महसूस करने और उन्हें शब्दों में ढालने की है। प्रेरणा मुझे जीवन के अनुभवों, प्रकृति, और लोगों की कहानियों से मिलती है। कभी-कभी एक छोटी-सी घटना भी कविता या शेर का रूप ले लेती है।
प्रश्न ,
क्या आपको लगता है कि साहित्य समाज में बदलाव ला सकता है?
उत्तर,
बिल्कुल! साहित्य समाज का आईना है। एक लेखक के शब्द समाज की सोच बदल सकते हैं, लोगों को जागरूक कर सकते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि मेरी रचनाएँ लोगों को सोचने और कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करें।
प्रश्न,
नवोदित लेखकों और शायरों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर,
मैं यही कहूँगा-
“लिखिए, जितना महसूस कर सकते हैं।
अपने दिल की सच्चाई को शब्दों में ढालिए।
समाज, समय और अपने अनुभवों को महसूस कीजिए,
और निरंतर सीखते रहिए।” डरिए नहीं सबका अंदाज़ अलग होता है। कोई शायर बड़ा या छोटा नहीं होता,
प्रश्न,
आपकी कोई प्रिय रचना या शेर जो आपके दिल के सबसे करीब हो?
उत्तर,
जी, मेरा पहला शेर आज भी मेरे दिल के बहुत करीब है-
“मतलब वो मुझसे पूछते हैं अपनी भरी जवानी का,
हूं कश्मकश में क्या दूं जवाब मैं उनके सवाल का।”
प्रश्न,
अंत में, अपने पाठकों के लिए कोई संदेश?
उत्तर,
मैं अपने पाठकों से यही कहना चाहूँगा-
“आपके दिल तक पहुँचना ही मेरी सबसे बड़ी सफलता है।
आप पढ़ते रहें, महसूस करते रहें,
क्योंकि आपकी मुस्कान और सोच ही मेरी रचनाओं की असली प्रेरणा है।”
प्रश्न,
आपके लिए ‘शायरी’ और ‘कविता’ में सबसे बड़ा अंतर क्या है?
उत्तर,
मेरे लिए शायरी दिल की आवाज़ है, जिसमें अल्फ़ाज़ों की नज़ाकत और भावनाओं की गहराई होती है। कविता में विचारों की उड़ान और कल्पना की शक्ति होती है। शायरी में लय और ग़ज़ल की बंदिशें हैं, जबकि कविता में भावनाओं की आज़ादी है। दोनों ही आत्मा की अभिव्यक्ति हैं, बस रंग अलग-अलग हैं।
प्रश्न,
क्या कभी ऐसा हुआ कि किसी सामाजिक घटना ने आपको तुरंत लिखने के लिए मजबूर कर दिया हो?
उत्तर,
जी हाँ, कई बार। जब भी समाज में कोई अन्याय या संवेदनशील घटना घटती है, तो मन बेचैन हो उठता है। ऐसे में कलम अपने आप चल पड़ती है।
ज़ुल्म की आंधियों से न घबराओ तुम ऐसे।
उम्मीद के चिराग जलाओ बहुत अंधेरा है।
प्रश्न,
आपके अनुसार, आज के दौर में साहित्य और सोशल मीडिया का रिश्ता कैसा है?
उत्तर,
सोशल मीडिया ने साहित्य को एक नया मंच दिया है। अब रचनाएँ तुरंत लाखों लोगों तक पहुँचती हैं। लेकिन इसके साथ ही चुनौतियाँ भी हैं-मूल्यवान साहित्य और सतही सामग्री में फर्क करना जरूरी है।
“सोशल मीडिया पर शब्दों की भीड़ है,
पर असली मोती वही हैं, जो दिल से निकले हैं।”
प्रश्न,
आपके जीवन का कोई ऐसा क्षण, जब आपको लगा कि लेखन ने आपको संभाला?
उत्तर,
ऐसे कई क्षण आए जब जीवन में निराशा थी, अकेलापन था। तब लेखन ही मेरा साथी बना, मेरी पीड़ा को शब्दों में ढालकर मुझे सुकून दिया।
“कलम ने जब दर्द बाँटा,
तो दिल हल्का हो गया।”
प्रश्न,
आपकी नज़र में साहित्य का समाज में सबसे बड़ा योगदान क्या है?
उत्तर,
साहित्य समाज को सोचने, समझने और बदलने की ताकत देता है। यह संवेदनाओं को जगाता है, रिश्तों को मजबूत करता है और इंसानियत को बढ़ाता है।
“साहित्य वो आईना है,
जिसमें समाज अपना असली चेहरा देख सकता है।”
प्रश्न ,आपकी पसंदीदा किताब या लेखक कौन हैं, और क्यों?
उत्तर,
मुझे प्रेमचंद, मिर्ज़ा ग़ालिब, और गुलज़ार साहब की रचनाएँ बेहद पसंद हैं। इनकी लेखनी में सच्चाई, गहराई और समाज की तस्वीर मिलती है।
“प्रेमचंद की कहानियों में गाँव की मिट्टी की खुशबू है,
ग़ालिब के शेरों में दिल की उलझनें हैं,
और गुलज़ार के अल्फ़ाज़ों में ज़िंदगी की मासूमियत है।”
प्रश्न ,
क्या आपको लगता है कि आज की युवा पीढ़ी साहित्य से जुड़ रही है?
उत्तर,
हाँ, आज के युवा सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य से जुड़ रहे हैं। वे अपनी भावनाएँ खुलकर व्यक्त कर रहे हैं। जरूरत है उन्हें सही दिशा और मंच देने की, ताकि वे अपनी रचनात्मकता को और निखार सकें।
प्रश्न,
आपके लिए ‘सफलता’ की परिभाषा क्या है?
उत्तर,
मेरे लिए सफलता यही है कि मेरी रचनाएँ किसी के दिल को छू जाएँ, किसी को सुकून या प्रेरणा दे सकें। पुरस्कार और पहचान बाद में आते हैं, असली सफलता पाठकों की मुस्कान है।
प्रश्न,
क्या कभी किसी आलोचना ने आपको बदलने या बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर,
हाँ, आलोचना हमेशा सीखने का मौका देती है। मैंने आलोचनाओं को सकारात्मक रूप में लिया है और अपनी रचनाओं को और बेहतर बनाने का प्रयास किया है।
प्रश्न,
आगे भविष्य में आप किन विषयों या विधाओं में लिखना चाहेंगे?
उत्तर,
मैं समाज के बदलते स्वरूप, युवाओं की समस्याएँ, पर्यावरण, और जीवन की नई चुनौतियों पर लिखना चाहता हूँ। साथ ही, बच्चों के लिए भी कुछ रचनाएँ लिखने का विचार है। मैने कहानियां भी लिखीं हैं,कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं,
प्रश्न,
आपको शायरी लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है? आपके लिए शायरी क्या मायने रखती है?
उत्तर,
मेरे लिए शायरी खुद से संवाद करने का, अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने का जरिया है। जब भी मैं लिखता हूं, तो अक्सर किसी खास शख्स या एहसास को ही शब्द देता हूं।
“रखता हूं तेरा ख्याल जब भी मैं कोई ग़ज़ल लिखता हूं।
तकते हैं लोग चांद को मैं तुझको चांद लिखता हूं।”
मेरी शायरी में अक्सर मेरे जज़्बात, मेरी यादें और मेरे अपने बहुत गहराई से शामिल रहते हैं।
यादों और रिश्तों के महत्व पर
प्रश्न,
आपकी ग़ज़लों में अक्सर यादें, मोहब्बत और जुदाई का जिक्र होता है। क्या ये आपके जीवन के अनुभव हैं?
उत्तर,
यादें और रिश्ते हर इंसान की ज़िंदगी में खास जगह रखते हैं।
“बहुत कुछ याद आ जाता है ज़हन को तेरे याद आने से।
तेरी यादें, तेरी क़ुर्बत, तेरी बातें, तेरा अंदाज़ लिखता हूं।”
मेरी शायरी में ये जज़्बात बार-बार लौट आते हैं, क्योंकि ये ही मुझे इंसान बनाए रखते हैं।
प्रश्न,
क्या आपको कभी लगता है कि वक्त के साथ आपकी अहमियत या पहचान बदल गई?
उत्तर,
बिल्कुल, वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है।
“अहम खबरों में शहर की कभी हम भी हुआ करते थे,
ख़ूबरू थे हम भी कभी, सच ब कमाल हुआ करते थे।”
कभी हम भी चर्चा में थे, लेकिन अब वक्त की रफ्तार में बहुत कुछ पीछे छूट गया है। ये बदलाव भी जिंदगी का हिस्सा है।
प्रश्न,
आपकी शायरी में इंतज़ार और जुदाई का रंग क्यों है?
उत्तर,
इंतज़ार और जुदाई शायरी की रूह हैं। बीते हुए लम्हे बड़ी तकलीफ़ देते हैं, और यादें शब्दों में उभर कर ग़ज़ल बन जाते हैं,
“वादा किया तो था उसने, वादा वफा ना हो सका उससे।
ज़ब्त देखिए मेरा, आज भी उसको इंतज़ार लिखता हूं।”
ये एहसास हर किसी की ज़िंदगी में कभी न कभी आते हैं, और इन्हें शब्द देना ही मेरी शायरी का मकसद है।
प्रश्न,
मोहब्बत को आप कैसे परिभाषित करते हैं?
उत्तर,
मोहब्बत मेरे लिए सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि एक पूरी दुनिया है। दिल का सुकुन भी है और मीठा मीठा दर्द भी,जो कभी दिल से जा नहीं सकता।
“मेरी आंखों में है तु, मेरे चेहरे को लोग पढ़ लेते हैं।
वो रहा नहीं मेरा, मैं अब भी उसको अपना लिखता हूं।”
मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती, वो किसी न किसी रूप में हमेशा हमारे साथ रहती है।
प्रश्न,
क्या आपको अपने पुराने दिनों की याद आती है?
उत्तर,
हैं अक्सर में बीते हुए वक्त में दूर बहुत दूर चला जाता हूं, वो लम्हे भुलाए कहां जाते हैं,याद आती है। यादें भी एक दौलत है, मुहब्बत की,
“लोग नाम से तेरे ही उन दिनों मुझको पुकारा करते थे,
के नाम तेरा कभी ‘मुश्ताक़’ हम ही तो हुआ करते थे।”
वो दिन, वो पहचान, वो लोग वो साथी वो स्कूल वो कॉलेज – सब यादों में बस गए हैं।
वक्त का पता ही नहीं चला आपकी खूबसूरत बातों में, गुज़ारिश है एक अच्छी सी ग़ज़ल हम सबको नवाजें,
जी शुक्रिया,,,,
,,,क्या ग़ौर से , देखा है आइना,
काँटा इश्क़ का तुम भी
ख़ुद को , चुभा कर देखो ।
जुदाई में तमाम रात आँसू
अपने , बहा कर देखो ।
अपनों को तो हर कोई
लगा लेता है , गले से अपने ।
कभी गैरों को भी तो सीने
से अपने लगा कर देखो ।
आग नफ़रत की लोगों के
दरमियान लगाने वालों ।
इन लपटों के बीच एक
पल तो बिता के देखो ।
कितने हसीन लगते हो
क्या ग़ौर से , देखा है आइना ।
जाओ रुख्सार पे जुल्फें
अपनी आज गिरा के तो देखो ।
हंसते हो कह कर के हमें
तुम पागल , मुश्ताक़ ।
चोट खाकर कोई तुम भी
अपने जिगर पर देखो ।
बहूत खूब,,,,,
डॉ. मुश्ताक अहमद साहब,
आपका दिल से शुक्रिया कि आपने हमें अपने कीमती वक़्त से नवाज़ा और अपने तजुर्बात, जज़्बात और अदबी सफ़र से रूबरू कराया।
आपकी ग़ज़ल, नज़्म, गीत और लेखों में जो दर्द, मोहब्बत, उम्मीद और इंसानियत की झलक मिलती है, वो दिल को छू जाती है।
आपकी शायरी में जो एहसास और सच्चाई है, वो हर शख़्स के दिल में उतर जाती है।
आपकी बातों में जो सादगी, तहज़ीब और इल्म है, वो हमें हमेशा याद रहेगा।
आपका तहे-दिल से शुक्रिया और आभार कि आपने हमारे सवालात का इतने ख़ुलूस और मोहब्बत से जवाब दिया।
दुआ है कि आपकी कलम यूं ही असरदार रहे और आपके अल्फ़ाज़ समाज में रोशनी और तब्दीली का सबब बनें।
शुक्रिया!
— डॉ. मुश्ताक अहमद