उम्र का सुरभित दीप
मैंने देखा है,
उस अनाम क्षण को,
जहाँ उम्र की सीमाएँ
महज़ शब्द बनकर रह जाती हैं।
जहाँ चालीस की देहलीज पर
न थमता है स्पंदन,
न रुकता है हृदय का संगीत,
वो तो बस बहता है,
जैसे बरसात में कोई नदी,
जो अपनी हर बूंद में
जीवन की गूंज समेटे हो।
वो प्रेम, जो वसंत के पहले फूल सा,
हर उम्र में खिलता है,
सफ़ेद बालों में बसी ओस की बूंदें,
जो समय की तपिश में भी
अपनी ठंडक नहीं खोतीं।
प्रेम की अगन में,
न उम्र की राख, न थकान की परछाई,
केवल वही उजास,
जो आत्मा के दीपक में जलता है।
हर धड़कन एक परस,
हर साँस एक आहट,
कि जीवन बस एक मधुर स्मरण है,
अमृत की एक बूँद,
जो हर उम्र में नया रंग भरती है।
— डॉ. सत्यवान सौरभ