ग़ज़ल
प्रेम मन से ही करेंगे, हम वतन के वो सिपाही।
भाव श्रद्धा का रखेंगे, हम वतन के वो सिपाही।।
राह में जो बो दिये हैं, शत्रु देखेगा अभी ही।
दूर काँटे सब हटेंगे, हम वतन के वो सिपाही।
मातृ भू की आज रक्षा, देख करनी है सभी को।
कार्गेय सारे अब बनेंगे, हम वतन के वो सिपाही।
ये क़दम पीछे हटें क्यों, शैल चढ़ना ही पड़े जो।
नित्य डट कर ही बढ़ेंगे, हम वतन के वो सिपाही।
छोड़ कर परिवार देखो, हम खुशी से आ गये।
देश के सब गुण गुनेंगे, हम वतन के वो सिपाही।।
शत्रु आये सामने जो, जा न पाये लौट कर ही।
( देश की ख़ातिर लड़ेंगे, हम वतन के वो सिपाही।। )
अब किसी से क्यों डरें हम, जां हथेली पर रखी है।
हम तिरंगा ओढ़ लेंगे, हम वतन के वो सिपाही।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’