कहानी

अहसान का मोल

गांव के एक छोटे से घर में रामलाल और उनकी पत्नी सुमित्रा रहते थे। दोनों ने अपनी पूरी जिंदगी मेहनत-मज़दू़री में गुज़ार दी, सिर्फ़ एक ही सपना था-उनका बेटा रोहित पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। गरीबी के बावजूद, रामलाल ने अपने खेत तक बेच दिए ताकि रोहित की पढ़ाई में कोई कमी न रहे। सुमित्रा ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए। दोनों ने अपने सपनों की सारी पूंजी बेटे की किताबों और फीस में लगा दी।
वक्त बीता, रोहित ने इंजीनियरिंग में टॉप किया और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी पा ली। उसकी शादी भी उसी की क्लासमेट से हो गई। अब रोहित के सपनों में विदेश बसने की चाह थी। मां-बाप को लगा, अब उनका बेटा उन्हें सुख-चैन देगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
विदेश जाने से पहले रोहित का व्यवहार बदलने लगा। अब वह मां-बाप के सवालों से चिढ़ने लगा था। एक दिन जब रामलाल और सुमित्रा ने उसे रोकने की कोशिश की, तो रोहित ने गुस्से में कहा,
“आप लोग क्यों बार-बार मुझे रोकते हो? जितना पैसा खर्च किया है, सब लौटा दूंगा। आपने कोई अहसान नहीं किया मुझपर, हर मां-बाप अपने बच्चों के लिए इतना तो करते ही हैं।”
यह सुनकर रामलाल और सुमित्रा के पैरों तले जमीन खिसक गई। बेटे की बातें तीर की तरह दिल में चुभ गईं। रोहित अपना सामान लेकर चला गया, पीछे छोड़ गया दो बूढ़े, टूटे हुए दिल और सूनी आंखें।
अब घर में सन्नाटा था। दोनों को खाने का मन नहीं था। सुमित्रा ने कांपते हाथों से रामलाल का हाथ थामा और बोली,
“क्या सच में हमने कोई अहसान नहीं किया? क्या मां-बाप का प्यार भी तौलने की चीज़ है?”
रामलाल की आंखों से आंसू बह निकले।
“शायद हमारे जमाने के सपनों की कोई कीमत नहीं रही, सुमित्रा। अब तो बस जीने की वजह ही खत्म हो गई है।”
समय बीतता गया। रोहित विदेश में अपनी नई ज़िंदगी में व्यस्त हो गया। लेकिन एक दिन उसकी पत्नी ने उससे पूछा,
“क्या तुम्हें अपने मां-बाप की याद नहीं आती? क्या पैसा ही सब कुछ है?”
रोहित चुप हो गया। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने माता-पिता के प्यार और त्याग को पैसों से तौल दिया। लेकिन जब तक वह लौटकर आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रामलाल और सुमित्रा अब इस दुनिया में नहीं थे। उनके कमरे में सिर्फ़ उनकी तस्वीरें और एक चिट्ठी थी-
“बेटा, अहसान का मोल नहीं होता, मां-बाप का प्यार लौटाया नहीं जाता, बस निभाया जाता है।”
रोहित फूट-फूटकर रो पड़ा, लेकिन अब पछताने के अलावा उसके पास कुछ नहीं था।
माता-पिता का प्यार और त्याग अनमोल होता है, उसे पैसों से नहीं तौला जा सकता। हमें अपने माता-पिता का सम्मान और साथ हमेशा निभाना चाहिए, क्योंकि वक्त लौटकर नहीं आता।
बिल्कुल, बेटे के जाने के बाद मां-बाप के जीवन में कई बड़े संघर्ष शुरू हो जाते हैं।
बेटे के जाने के बाद मां-बाप को सबसे ज्यादा जिस चीज़ ने परेशान किया, वह था गहरा अकेलापन। सदमा ,जिन उम्मीदों और सपनों के सहारे उन्होंने अपनी जिंदगी बिताई थी, वही अचानक चकनाचूर हो गईं।
बेटा ही उनका एकमात्र सहारा था, उसके जाने के बाद वे खुद को बेहद असहाय और तन्हा महसूस करने लगे।उन्हें लगातार यह दुख सताता रहा कि क्या उन्होंने बेटे की परवरिश में कहीं कोई कमी की थी क्या?
गांव या समाज में जब लोग पूछते कि बेटा कहां है, तो मां-बाप को जवाब देने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।“इतना पढ़ाया-लिखाया, फिर भी छोड़ गया!” ऐसी बातें उन्हें और ज्यादा तोड़ देती थीं।समाज में उनका सम्मान भी धीरे-धीरे कम होने लगा।
बेटा ही उनकी बुढ़ापे की लाठी था। उसके जाने के बाद उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी।
अगर वे बीमार पड़ जाएं या कोई जरूरत पड़ जाए, तो कौन देखभाल करेगा?खेत और गहने तो पहले ही बेटे की पढ़ाई में बिक चुके थे, अब आमदनी का कोई जरिया नहीं बचा था।
तनाव, दुख और चिंता का असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा।
बेटे के जाने के बाद दोनों को खाना खाने का मन नहीं करता था।
रातों को जागना और रोना उनकी दिनचर्या बन गई थी।
मानसिक तनाव से शारीरिक बीमारियाँ भी बढ़ने लगीं।
बेटे के लिए ही उन्होंने सारी उम्र मेहनत की थी। उसके जाने के बाद उन्हें लगा कि अब उनका जीवन व्यर्थ है।भविष्य के लिए कोई उम्मीद बाकी नहीं रही।
उन्हें लगा कि अब उनके पास जीने का कोई कारण नहीं बचा।
बेटे के जाने के बाद मां-बाप के लिए सबसे बड़ा संघर्ष भावनात्मक और मानसिक स्तर पर था-अकेलापन, असहायता और जीवन के उद्देश्य का खो जाना। यह संघर्ष हर उस मां-बाप के लिए बहुत बड़ा होता है, जिनकी दुनिया उनके बच्चों के इर्द-गिर्द घूमती है।
आज के जीवन का और रिश्तों का ये ही सच है।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- [email protected] , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,

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