कविता

रिश्तों की गूंज

रिश्ते – वो मौन स्पंदन,
जो न फासलों से बंधते हैं,
न ही समय की सीमाओं से,
ये तो दिल की उस गहराई में बसते हैं,
जहाँ हर एहसास की जड़ें गहरी होती हैं।

माँ की ममता – जो कभी लोरी बनकर,
तो कभी थपकी बनकर,
हमारे सपनों को संजोती है।
पिता का वो मौन संघर्ष,
जो हर जिम्मेदारी को मुस्कान से ढक देता है।

भाई – जो कभी हँसी-ठिठोली में छुपा,
तो कभी अनकही फिक्र में बसा रहता है।
बहन – जो कभी झगड़े में,
तो कभी आँखों में छलकते आंसुओं में,
अपना स्नेह उकेरती है।

ये रिश्ते समय से परे हैं,
इनका मूल्य वक़्त आने पर ही समझ आता है,
जैसे ठंडी छांव का महत्व
तब महसूस होता है,
जब जीवन की धूप तपाने लगे।

क्योंकि,
दिल से जुड़े रिश्ते कभी नहीं टूटते,
वे तो बस समय के साथ और गहरे,
और अमर हो जाते हैं।

— प्रियंका सौरभ

*प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) facebook - https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/ twitter- https://twitter.com/pari_saurabh

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