गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज लगता ही नहीं मन आँधियो धीरे चलो।
हो गयी है देख अनबन आँधियो धीरे चलो।।

सुख मिला भी तो सुनो जो वो नसीबों में नहीं।
देख बढ़ती नित्य उलझन आँधियो धीरे चलो।।

ग़म मुहब्बत में मिला बढ़ती ख़लिश तन्हा रहे।
ये बने हैं आज दुश्मन आँधियो धीरे चलो।।

जब उन्हें देखा चले आये बहुत वे पास ही।
तब बढ़ी खूब धड़कन आँधियो धीरे चलो।।

आज खुशबू से भरी चलने लगी देखो हवा।
गंध है ये आज भावन आँधियो धीरे चलो।।

आज छलनी कर दिया सीना ज़मीं ये रो रही।
गोलियों की हो न दनदन आँधियो धीरे चलो।

देख तपती ये ज़मीं है अब मिले छाया नहीं।
आ रहा है आज सावन आँधियो धीरे चलो।।

छीन मत मुस्कान कोई नहीं आसरा दे दे अभी।
दे सभी को आज मक्खन आँधियो धीरे चलो।।

देख बाँटे ध्यान कोई पर जुदा होना नहीं।
तोड़ सारी आज अड़चन आँधियो धीरे चलो।

दूर हर ख़तरा रहे अब ये ज़मीं रक्षित रहे।
सुन न टूटे कोई दरपन आँधियो धीरे चलो।।

अब सजा सिंदूर ही हो चूड़ियाँ खनकें सदा।
पायलें बजने लगें छन आँधियो धीरे चलो।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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