ग़ज़ल
आसमानों का समय है,
अब उड़ानों का समय है।
अब नहीं ईमान वाले,
बेईमानों का समय है।
छोड़िये आवाम को अब,
हुक्मरानों का समय है।
बोलने वालों सुनो, अब,
बेज़ुबानों का समय है।
नर नहीं, नारी नहीं ये,
दरमियानों का समय है।
गीत, ग़ज़लें गुनगुनाओ,
ये तरानों का समय है।
लौट जाने का नहीं जय,
इम्तहानों का समय है।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’