वो ठूँठ
आते जाते रास्ते किनारे
ऊँचे ऊँचे वृक्ष वह सारे,
अंबर छूने की कोशिश में
बनकर वितान छा जाते।
पेड़ों से बने गुफाओं के बीच
सूनी सड़क पर सरपट भागते
दिख जाते कई ऐसे वृक्ष।
कुछ तो पत्तों से लदे हुए
कुछ की शाखा से निकली लताएं
जमीन को छूते नजर आती।
फिर कभी वृक्षों की कतार में
अचानक एक पर्ण रहित
खड़ा ठूँठ सामान पेड़
ऐसा क्रमशः हर पाँच छः वृक्ष के बाद.
क्या समझे उस ठूँठ को?
वह बेबस है या अंबर से
वो कर रहा गुहार कि
अब हमें बुला लो अपने पास।
ना वो गुहार नहीं करता
बाकी वृक्षों को बताता है
इतना घमंड ना कर
तुझे भी एक दिन ठूँठ होना है।
फिर अचानक एक दिन
उस ठूँठ पर एक पत्ता आ जाता
औऱ फिर वह भरा-पूरा
जैसे कि नवविवाहिता
सोलह सिंगार किए।
यही तो सत्य है
दिवस यामिनी
उदय अस्त
सीखना है प्रकृति से ही।
— सविता सिंह मीरा