सुख शान्ति
” चिंटू की मम्मी सही कहती हो। नई नवेली बहू को घर के कायदे कानून सिखाने ही होंगे। माना अपने घर की लक्ष्मी है किंतु.।”
” हाँ, मैं भी यही कहना चाहती हूँ। देखा ना पडोस की गुड्डू को….कैसे अनजान लोगों के साथ भी बतियाती रहती है।”
” मैं तो अपनी बहू को घर से बाहर ही न जाने दूंगी। पता नहीं कौन, कब, क्या सीखा दे।”
” आप संभलकर रहना। आपकी बहू न…”
” चलो मैं चलती हूं।”
” ठीक है। अपनी बहू पर लगाम कसकर रखना। फिर न कहना मैं ने बताया नही।”
मन ही मन मुस्कुराती उसने अपनी बहू से कह दिया।
” बहू हम दोनों को घर संभालना है। आसपास के लोगों से बचकर रहना। अपना-पराया पहचान लेना।”
” मेरी मानो तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है।”
” खाली बैठी वे इधर का उधर कसती रहती है।”
” इन तिकड़म बाजों से संभलकर रहना।”
” अपना पराया देख दोस्ती का हाथ बढाना।”
घर परिवार सुख शान्ति से रह रहा है।