लघुकथा

सुख शान्ति

” चिंटू की मम्मी सही कहती हो। नई नवेली बहू को घर के कायदे कानून सिखाने ही होंगे। माना अपने घर की लक्ष्मी है किंतु.।”

” हाँ, मैं भी यही कहना चाहती हूँ। देखा ना पडोस की गुड्डू को….कैसे अनजान लोगों के साथ भी बतियाती रहती है।”

” मैं तो अपनी बहू को घर से बाहर ही न जाने दूंगी। पता नहीं कौन, कब, क्या सीखा दे।”

” आप संभलकर रहना। आपकी बहू न…”

” चलो मैं चलती हूं।”

” ठीक है। अपनी बहू पर लगाम कसकर रखना। फिर न कहना मैं ने बताया नही।”

मन ही मन मुस्कुराती उसने अपनी बहू से कह दिया।

” बहू हम दोनों को घर संभालना है। आसपास के लोगों से बचकर रहना। अपना-पराया पहचान लेना।”

” मेरी मानो तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है।”

” खाली बैठी वे इधर का उधर कसती रहती है।”

” इन तिकड़म बाजों से संभलकर रहना।”

” अपना पराया देख दोस्ती का हाथ बढाना।”

घर परिवार सुख शान्ति से रह रहा है।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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