कविता

श्रद्धांजलि

आज जन-जन की आंखें नम है
शोक में डूबा धरा का हर कण है
अहमदाबाद की हवाई दुर्घटना से
सैंकड़ों घर उजड़े, व्यथित मन है।

सैंकड़ों बहुमूल्य जिन्दगियां
देखते ही देखते राख बन गईं
चाहकर भी कोई कुछ कर न सके
कैसी लाचारी कैसी थी यह बेबसी

कई प्रश्न भी दिल में उमड़ रहे
क्या इतना सस्ता जीवन है
पायलट दोनों ही अनुभवी थे
फिर क्यों मुरझाया उपवन है।।

अभी तो बस उड़ान भरी भर थी
फिर सहसा क्यों, नीचे आ धमका
एक साथ दोनों इंजन फेल हुए
ऐसा कैसे भला हो सकता ।।

दो हजार करोड़ रुपए का विमान
निश्चित ही अत्यंत आधुनिक होगा
क्या पूर्ण परीक्षण किये बिना
उड़ने का आदेश दिया होगा।।

ऐसे ही अनेकानेक सवाल
बरबस ही दिल में उठते हैं
सघन जांच से ही पता चलेगा
प्रश्न सुलझते हैं या कि उलझते हैं।

यद्यपि यह घाव बहुत गहरे हैं
आसानी से नही मिट पाएंगे
एक लम्बा वक्त बीतने के बाद ही
शायद कुछ हल्के हो पाएंगे।।

समय की यही तो विशेषता है
सब खुद में समाहित कर लेता है
अमृत हो या हो विष का प्याला
सब-कुछ धारण कर लेता है।।

समय के साथ यह विकट आपदा
भूली बिसरी याद बन जाए
ईश्वर से यही प्रार्थना है
सब मुक्ति व सद्गति पाएं।।

ईश्वर से यही प्रार्थना है
सब मुक्ति व सद्गति पाएं।।

— नवल अग्रवाल

*नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

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