” धूप “
” धूप ”
मेरे बिना उसका दिन कैसे बीता होगा
इंतज़ार की धूप में तपते हुए बीता होगा
सावन की जब काली घटायें छाई होगी
यादों की बरसात से वो सरापा भींगा होगा
जब जब नभ में बिजली जोरों से चमकी होगी
तब तब मेरी आँखों के नूर से वो घिरा होगा
तितर बितर हो कर छंट गये देखो बादल
चाँद सा मेरा खिला चेहरा उसे दिखा होगा
उत्तर दिशा से एकाएक ठंडी हवा बहते हुए आई है
आते आते मेरे लिए वो नया शाल खरीदा होगा
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत खूब !