मैं बाक़ायदा….
मैं बाक़ायदा सृजित आकार नहीं हूँ
नवरस हूँ सिर्फ़ छन्द अलंकार नहीं हूँ
केवल परहन ए जिस्म न समझना मुझे
पहले निराकार हूँ ज़्यादा साकार नहीं हूँ
मन का ख्याल हूँ ,ख्वाब हूँ ,तसव्वूर हूँ
दिमाग़ का बेतरतीब तल्ख़ विचार नहीं हूँ
जबसे तुम मेरी जिंदगी में आए हो
गुलज़ार ए बहार हूँ मैं खार नहीं हूँ
दर्द किसी का मुझसे से सहा ज़ाता नहीं
मैं मौज़.कश्ती ,सागर हूँ पतवार नहीं हूँ
अलग उस्लूब हूँ ,अलग अंदाज़ हूँ
जहाँ का केंद्र बिंदु हूँ ,हिसार नहीं हूँ
किशोर कुमार खोरेंद्र
(परहन =वस्त्र ,तल्ख़ = कटु ,फिराक -वियोग ,वस्ल = मिलन ,गुलज़ार =बाग ,खिंजा =पतझड़
उस्लूब =शैली ,हिसार =परिधि)
शानदार !
बहुत खूब .