मुक्तक
आशियाना
बिन आस के दुनियाँ में जीने में क्या रक्खा है
दिल में दिलबर के लिए आशियाना बना रक्खा है
उसके प्यार और चाहत ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
कहीं अकेला न रह जाहूं मैं जनाजा सजा रक्खा है
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
आशियाना
बिन आस के दुनियाँ में जीने में क्या रक्खा है
दिल में दिलबर के लिए आशियाना बना रक्खा है
उसके प्यार और चाहत ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
कहीं अकेला न रह जाहूं मैं जनाजा सजा रक्खा है
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Comments are closed.
umda
अच्छा !
Thanks
मुक्तक ! बहुत खूब .
आप का तहे दिल से हार्दिक आभार .