तुम्हारी इबादत
कविता लिखने की
मुझे तो है आदत
इसी बहाने कर लिया करता हूँ
रोज तुम्हारी इबादत
तुम्हारे सौन्दर्य से
अभिभूत हो जाया करता हूँ
मुझे आनंदित कर जाती है
तुम्हारे अधरों पर
खिल आई मुस्कुराहट
देखता रह जाया करता हूँ
मैं तुम्हें एकटक
तुम्हारी तस्वीर को
जो हुआ करती है अति मनमोहक
मालूम नहीं तुम मेरे बारे में
क्या सोचती हो ….
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारी आत्मा की चमक
को ही निहारता हूँ
लेकिन जब तुम
मेरे इस निश्छल व्यवहार पर भी
संदेह करती हो
तब मेरा मन
हो जाया करता हैं आहत
बादलों में तुम्हारे मुलायम बालों का ही
रंग होता है श्यामल
इन्द्रधनुष की तरह ही
रंगीन होता है तुम्हारा स्नेहिल आँचल
गुलाब की पंखुरियों की तरह ही
होते है तुम्हारे सुन्दर कपोल कोमल
मुझसे मिलकर जब लौटती हो तो
नदी की तरह बलखाती हुई
मेरी नज़रों से हो जाया करती हो तुम
दूर …किसी मोड़ पर ..ओझल
एकाएक तब सूना सा लगने लगता हैं
सूखे पत्तों की तरह
लड़खडाने लगते है मेरे कदम
चाहे आस पास
कितना भी हो कोलाहल
कविता लिखने की
मुझे तो है आदत
इसी बहाने कर लिया करता हूँ
रोज तुम्हारी इबादत
*किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत अच्छी लगी यह कविता खोरेंदर जी .
dhanyvad gurmel ji
वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!
shukriya vijay ji