उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ३)
1. नृशंस सुल्तान की तख्त नशीनी
अपने चाचा, ससुर और सुल्तान जलालुद्दीन का सर भाले की नोक पर उठाए 1296 को अलाउद्दीन खिलजी बलबन के लाल महल में आया। बड़ी शान-शौकत से वो सुल्तान के तख्त पर बैठा। अगले कुछ दिन वो अपने विरोधियों को ठिकाने लगाता रहा। खजाने से दौलत लुटाई गई। और जो दौलत से नहीं माने उन्हें एक-एक करके मौत के घाट उतार दिया गया।
अलाउद्दीन ने अपने भाई उलूग खाँ को अर्कली खाँ और इब्राहिम का वध करने के लिए भेजा। अर्कली और इब्राहिम दोनों ही मृतक सुल्तान के पुत्रा थे। ये इस वक्त अपनी माँ के साथ मुल्तान में पनाह लिए हुए थे। ये दोनों शहजादे अपने सेनापति अहमद चप के साथ पकड़े गए और इन्हें अंधा करके कैद कर लिया गया। शहजादो की माँ मलिका-ए-जहां जो मृतक सुल्तान जलालुद्दीन की बीवी थी उसे भी कैदखाने के हवाले कर दिया गया।
अपने सभी विरोधियों की दौलत और उनकी औरतों को इस नए सुल्तान ने लूट लिया। और यूँ उसका खजाना दौलत से और हरम सुंदर स्त्रिायों से भर गया। और यूँ अलाउद्दीन खिलजी 1296 में निष्कंटक होकर तख्तनशीं हुआ और पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण हर दिशाओं इस्लाम के नाम पर लूट-मार और जवान स्त्रियों को पकड़कर हरम में लाने की योजनाएँ बनाने लगा।
अलाउद्दीन ख़िलजी कीपृष्ठभूमि से स्पष्ट है कि वह बहुत क्रूर और कामुक था। ऐसे शासक से समाज की भलाई की आशा नहीं की जा सकती।
upnyas ki agli kadiyo me alauddin ki krurta spasht ho jayegi..