राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सपने और ख्याली पुलाव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक पुरानी आदत हैं। दिन में सपने देखना और ख्याली पुलाव बनाना।
संघ बिना नींव के हवाई किले बनाना बंद करे और दूध न देने वाली गऊ के थनों से दूध निकालने का प्रयास भी बंद करे उसी में सभी की भलाई हैं।
संघ से सम्बंधित नेताओं के बयानों को देखिये।
दो साल में राम मंदिर बन कर रहेगा- अशोक सिंघल
भारत 2025 में फिर से विश्वगुरु बनेगा- सरसंघचालक मोहन भागवत
अब हाल ही के बयान देखिये
25 दिसंबर को 5000 मुसलमानों और ईसाईयों को शुद्ध करके रहेंगे- राजेश्वर सिंह,नेता,धर्म जागरण मंच
यह देश हिन्दुओं का हैं और देश के सभी मुस्लमान और ईसाई यहाँ से बाहर निकल जाये। – राजेश्वर सिंह, नेता,धर्म जागरण मंच
और अंतिम बाबा जी का ठुल्लु बयान
25 दिसंबर का अलीगढ का घर वापसी का प्रोग्राम स्थगित किया जाता हैं।
ध्यान देने योग्य तथ्य
१. आपके बयानों से हिन्दू एक बार बुलबुले के समान उछलते हैं मगर जैसे ही बुलबुला फटता हैं फिर से सदियों पुरानी चिर निंद्रा में सो जाते हैं।
२. उनके कागज़ी बयानों के असर से गैर हिन्दू विशेष रूप से मुस्लिम और ईसाई गुपचुप तरीके से अपनी तैयारी करने लगते हैं और हिन्दुओं को गैर हिंदु बनाने का कुचक्र और अधिक तेजी से चलाते हैं।
३. मीडिया में उजुल फिजूल बयानबाजी से सेक्युलर लॉबी की पौ बारह हो जाती हैं। उन्हें व्यर्थ में बैठे बैठाये मुद्दा मिल जाता हैं।
४. सबको राजनीतिक रोटियाँ सेकने का मौका मिलता हैं। दलित पार्टियाँ आरक्षण और अन्याय के नाम पर, हिंदुत्व पार्टियाँ हिंदुत्व के नाम पर, सेक्युलर पार्टियाँ सेक्युलरता के नाम पर सब अपना अपना हिस्सा बाँटने का प्रयास करती हैं।
५. जिस दलित समाज को शुद्ध करना हैं उसकी हालत धोबी का कुत्ता घर का नहीं घाट जैसी हो जाती हैं। क्या स्वर्ण हिन्दू समाज उसके साथ कभी भी रोटी बेटी का सम्बन्ध रखता हैं? असमान व्यवहार, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर आदि की दूरियाँ मिटाने में हिन्दू समाज असक्षम रहता है। इसलिए दलित न तो मुख्य विचारधारा में शामिल होकर संगठित हो पाते हैं और न ही अपने आपको हिन्दू कहने का गर्व महसूस कर पाते हैं।
अंत में करना क्या हैं इस पर विचार होना चाहिए। हो हल्ला करने के स्थान पर ईमानदारी से प्रयास होना चाहिए। जातिवाद उनर्मूलन एक मात्र विकल्प हैं अपने से दूर हो रहे भाइयों को समीप लाने का। इस महान कार्य का उद्देश्य राजनीतिक नहीं अपितु समाज सुधार होना चाहिए।
हिन्दू समाज के प्रबुद्ध लोगों को यह सोचना होगा की अगर उन्होंने ईमानदारी से आज काम नहीं किया तो कल उन्हें शायद ही मौका मिले क्यूंकि जिस प्रकार से जनसँख्या के समीकरण बदल रहे हैं इनका भविष्य अंधकारमय हैं।
डॉ विवेक आर्य
हालाँकि आपके विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ, फिर भी आपकी बात में दम है. लेकिन एक बात जरुर कहूँगा कि ऊंचे सपने देखने वाले ही सफल होते हैं.
विवेक जी , हिन्दू धर्म ने आज तक अपने को सुधारने की कोई कोशिश नहीं की . अगर हिन्दू धर्म इमानदार होता तो यह लोग इसाई या दलित हिन्दू धर्म छोड़ कर जाते ही नहीं . जो धर्म इकीसवी सदी में भी कहता है कि शुद्र पैरों से जन्मा है तो वोह शुद्र पागल होगा जो अभी भी हिन्दू धर्म को पकड़ कर बैठा है . जो मुसलमान या इसाई अपना धर्म छोड़ कर हिन्दू बनेगा उस की हालत तो पहले से भी बदतर हो जायेगी किओंकि कोई भी हिन्दू उस के साथ रिश्ते नहीं करेगा किओंकि हिन्दू समाज तो पहले ही इतनी जातिओं में बटा है कि बच्चों की शादिआन करने से पहले जाती बरादरी और गोतर के मामले में पहले खूब रीसर्च होती है . यह जो घर वापसी की बातें हैं यह नफरत फैलाने से ज़िआदा और कुछ नहीं .
विचारणीय विषय पर आपका विचार सराहनीय है … मेरा मानना है की हिन्दू धर्म को यह साबित करना होगा कि यह बहुत ही उच्च कोटि का धर्म है ताकि लोग इसे खुद स्वीकार करें कोई जोर जबर्दश्ती या प्रलोभन से खुद हिन्दू धर्म कमजोर होगा और विरोधियों की पौबारह होगी.
सराहनीय। आपकी सोच विवेक पूर्ण है। बधाई।