कुण्डलियाँ
1
नए स्वप्न ले नयन में, अधरों पर मुस्कान,
समय-सखा फिर आ गया, पहन नवल परिधान ।
पहन नवल परिधान, बजी है शहनाई -सी,
तुहिन आवरण ओढ़, धरा है शरमाई- सी ।
किरण-करों से कौन, भला घूँघट पट खोले,
धरा नतमुखी मौन, मुदित है नए स्वप्न ले ।।
2
दिल को लगती कह गया, बातें बीता साल,
सीख समय से पाठ कुछ, बनना एक मिसाल ।
बनना एक मिसाल, सृजन की हो तैयारी,
करें अमंगल दूर, रहें अरिदल पर भारी ।
सरस, सुगन्धित वात, मुदित हो सारी जगती,
मन से मन की बात, करें प्रिय दिल को लगती ।।
3
चंदा -सा सूरज हुआ, बदला- बदला रूप,
सज्जन के मन -सी हुई, सुखद सुहानी धूप ।
सुखद सुहानी धूप, शीत में लगती प्यारी,
नयन तकें अब राह, भेंट है प्रभु की न्यारी ।
तेजोमय का तेज, लगे जब कुछ मंदा -सा,
समझ समय का फेर, न हो सूरज चंदा- सा ।।
4
कल सपनों ने नयन से, की कुछ ऐसे बात,
कहते सुनते ही सखी, बीती सारी रात ।
बीती सारी रात, सुनी गाथाएँ बीती,
पढ़ा बहुत इतिहास, जंग सब कैसे जीती ।
सीख समय से पाठ, रचा सुख किन जतनों ने,
उड़ा दई फिर नींद, नयन से कल सपनों ने ।।
5
जागेगा भारत अभी, पूरा है विश्वास,
नित्य सुबह सूरज कहे, रहना नहीं उदास ।
रहना नहीं उदास, सृजन की बातें होंगी,
कर में कलम-किताब, सुलभ सौगातें होंगी
करे दीप उजियार, अँधेरा डर भागेगा,
बहुत सो लिया आज, सुनो भारत जागेगा ।।
6
बहुरंगी दुनिया भले, रंग भा गए तीन,
बस केसरिया, सित, हरित, रहें वन्दना लीन ।
रहें वन्दना लीन, सीख लें उनसे सारी,
ओज, शूरता, त्याग, शान्ति हो सबसे प्यारी ।
धरा करे शृंगार, वीर ही रस हो अंगी,
नस-नस में संचार, भले दुनिया बहुरंगी ।।
7
बोलें जिनके कर्म ही, ओज भरी आवाज़,
ऐसे दीपित से रतन, जनना जननी आज ।
जनना जननी आज, सुता झाँसी की रानी,
वीर शिवा सम पुत्र, भगत से कुछ बलिदानी ।
कुछ बिस्मिल, आज़ाद, धर्म से देश न तोलें,
गाँधी और सुभाष, भारती जय-जय बोलें ।।
8
लिख देंगे नव गीत हम, भरकर जोश, उमंग,
गूँज उठे हुंकार अब, विजय नाद के संग ।
विजय नाद के संग, सहेजें गौरव अपना,
करना है साकार, मात का सुन्दर सपना ।
तूफानों का वीर, पलटकर रुख रख देंगे,
स्वर्णमयी तकदीर, वतन की हम लिख देंगे ।।
— डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
आपने कुण्डलिया छंद का बहुत बेहतर उपयोग किया है. वास्तव में छंद-बद्ध कविता ही असली कविता है.
प्रेरणा भरी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ !
बहुत अच्छी लगीं .
प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार !