उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ११)

9. भविष्य का संकेत

राजा की आज्ञा से महल में हलचल शुरू हो जाती है, सैनिक मुख्य प्रांगण में इकट्ठे हो रहे हैं। कोई पाँच-छः हजार खड़्गधारी, सेनापति इंद्रसेन घोड़े पर सवार जरूरी निर्देश दे रहे हैं। शस्त्रागार का अवलोकन करने के बाद वो उप-सेनापति कंचन सिंह से पूछते हैं ”उप-सेनापति जी देवल (सिंध का एक नगर) से जो तलवारें आयात की थी वो आई या नहीं।“ उप-सेनापति जानकारी न होने की बात कहता है। तभी शस्त्रागार का प्रधान कहता है ”सेनापति जी, उन्हें आने में तो अभी एक मास का समय है।“

इंद्रसेन विवशता से अपने दाएँ हाथ की मुट्ठी बायीं हथेली पर मारता है। फिर शस्त्रगार के प्रधान को आवश्यक निर्देश देकर चला
जाता है।

इंद्रसेन घोडे़ से उतर पड़ता है, सेवक घोड़े की रास थाम लेता है। अपने कक्ष में जाते हुए वो देखता है। एक बालक जिसके हाथ में एक बड़ा-सा झाडू है वो उसे देखकर एक स्तंभ के पीछे छिप जाता है। इंद्रसेन कड़कती आवाज में कहता है ”कौन है वहाँ, बाहर आओ।“

श्याम वर्ण आठ-नौ वर्ष का एक बालक डरते-सहमते खंभे की ओट से बाहर आता है।

”क्यों रे, तेरे छिपने के पीछे का क्या अभियोजन है?“ बालक चुप रहता है, बस हल्के-से फड़फड़ा कर रह जाता है।

”बोल नहीं तो अभी खड्ग के वार से मौत की निद्रा में सुला दूँगा। कहीं तू आक्रमणकारियों का कोई भेदी तो नहीं।“

”नहीं-नहीं, मैं तो आज ही राजमहल में नियुक्त हुआ हूँ, भंगी हूँ।“

”हूँ। तो यूँ छिपने का कारण।“

”कहीं मेरे छूने से आप मैले न हो जाएँ। हम अछूत हैं न। कोई हमें देख भी ले तो अपवित्र हो जाता है। इसलिए हमारे प्रधान ने हमें रात्रि के समय सफाई के लिए भेजा है।“

इंद्रसेन आगे बढ़कर उसके कंधे पकड़ लेता है। लड़का पीछे हटने की कोशिश करता है। इंद्रसेन की पकड़ सख्त होती है, पर बालक शक्ति लगाकर स्वतंत्र हो जाता है।

”छूँ लिया, मुझे अब इतनी रात्रि को स्नान करना पड़ेगा।“

”स्नान।“ इंद्रसेन हँसते है, “ठीक है फिर मेरे कक्ष में चलकर मेरे स्नान का प्रबंध करो। ये सेनापति की आज्ञा है।“

बालक इंद्रसेन के साथ कक्ष में आ जाता है। स्नान की सामग्री के बारे में बालक के प्रश्न पर इंद्रसेन कहते हैं, ”तुम्हारे छूने भर से यदि हम अपवित्र हो जाते तो तुम्हारे भी हमारी तरह दो हाथ, दो पैर, दो आँख न होती। ध्यान से देखो मुझे फिर बताओ क्या ईश्वर ने तुम्हें शरीर में हमसे भिन्न बनाया है।“

”नहीं।“

”तो फिर।“

”पर सब तो यही कहते हैं।“

”कहने दो उन्हें। जातियाँ जन्म लेने से निर्धारित नहीं होती, कर्म से होती हैं। इंद्रसेन की पकड़ से खुद को स्वतंत्र करा लेने वाला असाधारण ही होगा अस्तु जातियों की इन जटिलताओं से निकलकर कर्मों से खुद को महान बनाने का अभ्यास करो। लो, ये झाडू फेंक दो और हाथ में तलवार उठाओ और उसकी झंकार से म्लेच्छों के विजय रथ के पहिए काट कर फेंक दो। उनके अश्वों का मार्ग अवरूद्ध कर दो। उनके खेमों से लूटी गई अबलाओं को सम्मान स्वतंत्र कराके उन्हें सम्मान प्रदान करो। अपनी तलवार से उस अद्भुत कार्य का सृजन करो जिसे लोग युगों-युगों तक सुनते-सुनाते रहें।“

बालक विचारमग्न खड़ा रहता है। इंद्रसेन तलवार बालक की तरफ बढ़ाकर, ”लो, आगे बढ़ो और अपने उद्योग से अपनी जाति को बदल दो, बदल दो वो क्रूर नियम जो व्यक्ति से व्यक्ति को भेद करना सिखाए।“

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल [email protected] blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

2 thoughts on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ११)

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा रोचक उपन्यास. इसमें उत्सुकता चरम पर पहुँचती जा रही है.

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