कविता

क्षणिका

बहुत औरतों की कहानी हो सकती है न ?

पति की पूरी जिन्दगी गुजरी
सासु जी को खुश रखने में
जब तक सासु जी जिन्दा थीं
चैन का एक पल नहीं ले सकी
अब पुत्र प्रयासरत है
अपनी पत्नी को
हर पल खुश रखने में
पुष्पा लम्बी साँस ले
हर साल जीती है जिन्दगी
जीत जाती है अपने आत्मविश्वास से

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चिल्लपों नहीं हो बीते कल की
चहक रहे आने वाले कल की
चवाव से सामना ना हो कभी
चहर में लीन रहें सदैव सभी

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*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “क्षणिका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ भाई …. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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