लहर अभी बाकी है, ब्रेक न लगाइये…
लहर अभी बाकी है, ब्रेक न लगाइये.
देश अभी जागा है, उसे न सुलाइए.
झाड़खंड को जीता है, जम्मू तक पहुंचा है.
प्रेम सद्भाव की हवा को बहाइये.
सभी भारतीय हैं, प्रेम अभिलाषी हैं,
बीच मंझधार में, नाव न डूबाइए
साथ सबको चलना है, आगे ही बढ़ना है,
धर्म और जाती का भेद न बढाइये.
सबला बने अबला, बालक सुरक्षित हो,
सार्वजनिक हित में, कदम को बढाइये.
झंडा तिरंगा है, नदी सोन गंगा है,
राष्ट्रीय ध्वज को और फहराइये.
चाहे कोई जाती है, ईश्वर की थाती है,
छोटे बड़े सबको, गले से लगाइये.
नक्सल बनवासी हों, या कि आदिवासी हो,
भटके लोगों को, नया राह दिखलाइये .
– जवाहर
वाह बहुत अच्छी पंक्ति।
वाह वाह ! सुन्दर कविता !!
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी!
बहुत अच्छी कविता लगी .
हार्दिक आभार आदरणीय गुरमेल सिंह जी!