कविता

हैं वे ..खामोश

पर्वतों के पास नहीं हैं ओंठ

कैसे अभिव्यक्त करे मन की बाते
रहे हैं वे सोच

सदियों से खड़े हैं जंगल में वृक्ष
अपने ही सायों से
घिरे हुए …हैं वे खामोश

नदियों को सागर तक तो जाना ही हैं
पल भर को ठहरे कैसे
आगे जो हैं नए नए अनगिनत मोड़

उसे अपनी ही परछाई नजर नहीं आती
कभी इतना अन्धेरा हैं
कभी निशा सोती हैं
चांदनी के धागों से बुनी हुई चादर को ओढ़

दूर दूर तक फैला हैं नीला समुद्र
लहरे तट तक आकर कुछ कह जाती हैं
पर वह लगता हैं हमें सिर्फ भीषण शोर

जीवन सिर्फ एक मौन उत्तर हैं
बेवज़ह रेत पर लिखे शब्दों में
प्रश्न यहाँ न तू खोज

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “हैं वे ..खामोश

  • बहुत अच्छी कविता है जी .

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