कविता

तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं

यादों में बस तुम हो ख्वाबो में बस तुम हो
तुम सुनो प्रिये तुम बिन ये रात बेचारी हैं…
जब सोचे तुम्हे सोचें जब चाहे तुम्हे चाहे
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं …..
तुम साथ जो होते हो हमें होश नहीं रहता 
तुम दूर जो जाते हो ये वक़्त नहीं बहता
अब कैसे बताये हम कैसे सदियाँ गुजारी हैं
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं …..
हमें प्यार बहुत तुमसे ये जानते हो ना तुम
पर वक़्त की मजबूरी तो मानते हो ना तुम
कब कहा तुम्हे हमने ये दुनियादारी हैं
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं …..
तुम ना हो सनम तब हम पल-पल बेकल हैं
ये जी घबराया सा और मन में हलचल हैं
तुम साथ मेरे हमदम ये सोच ही प्यारी हैं
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं …..
इस प्यार के आगे तो क्या चीज़ हैं गम बोलो
हमें प्यार बहुत तुमसे क्या हैं ये कम बोलो
जग जीत ही लेंगे हम भला क्या लाचारी हैं
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं
ये दुनिया देखेगी इस प्यार को हाँ एक दिन
और वो भी मानेगी इकरार को हाँ एक दिन
हैं काम बहुत हमको, बड़ी जिम्मेदारी हैं
तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं
______________________गंगा

One thought on “तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता !

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