ग़ज़ल
चार दिन की चाहत का हमने ये सिला पाया, आहे आतशी पाई ,ख्वाब आबला पाया। ज़ख्म पर नमक देकर इस
Read Moreतू मयूर सा, मैं पैजनी। तू भोर सा, मैं रागिनी। तू गीत कोई, मैं साज हूँ। तू मौन सा, मैं
Read Moreदर्द को शब्द में ढालकर आई हूं, बैठकर रोना मुझको गवारा नही। पीर के मेघ पलकों में छाए मगर, अश्रुमोती
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