कविता

मैं साज हूँ

तू मयूर सा,
मैं पैजनी।
तू भोर सा,
मैं रागिनी।
तू गीत कोई,
मैं साज हूँ।
तू मौन सा,
मैं आवाज हूँ।
तू कठोर सा,
मैं मोम सी।
तू संकुचित,
मैं व्योम सी।
कभी यूँ भी मिल,
किसी छोर तू।
इस ओर मैं,
उस ओर तू।

— अभिलाषा सिंह

अभिलाषा सिंह

1.रचनाकार का पूरा नाम-अभिलाषा सिंह 2.माता का नाम-श्रीमती शोभा सिंह 3.पिता का नाम-श्री रामबरन सिंह 4.जन्म स्थान- हथसारा,कोहरौन,प्रतापगढ़ जन्म तिथि-06-03-1981 5-विवाह वर्ष-2002 6-पति का नाम-श्री जीतेन्दर सिंह 7.स्थाई पता- जनपद-प्रयागराज,उत्तर प्रदेश 8-शिक्षा-परास्नातक,बीएड (हिन्दी,अंग्रेजी) 9.संतति-शाम्भवी सिह पुत्री और शाश्वत सिह पुत्र 10.व्यवसाय-शिक्षिका,सहायक अध्यापिका,बेसिक शिक्षा परिषद,उत्तर प्रदेश 11.प्रकाशन विवरण- दो साझा संकलन प्रकाशित,गजलों का संग्रह किताब प्रकाशनाधीन। लेखन विधा में कविता,लेख, मोटिवेशनल,कोट्स,कहानी,निबंध,समीक्षा,गजल और लघुकथा लिखती हूँ। वर्तमान में लगभग 300 से उपर रचनाएँ प्रकाशित हैं।मेरी रचनाएँ अमेरिका यू एस ए,नेपाल,एवं भारत के विभिन्न दैनिक,साप्ताहिक एवं सांध्य समाचार पत्रों और मासिक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती हैं। ऑनलाइन प्रकाशन-प्रतिलिपि,साहित्यिक पत्रिका इन्दौर समाचारपत्र, साहित्यिक पत्रिका साहित्यनामा,शब्द सागर पत्रिका, स्वैच्छिक दुनिया पत्रिका,प्रभात दस्तक पत्रिका,हरियाणा प्रदीप पत्रिका आदि में विभिन्न रचनाएँ प्रकाशित हैं। 12.सम्मान विवरण- श्रेष्ठ सृजनकार सम्मान,साहित्य वट सम्मान,उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान,श्रेष्ठ उद्घोषक सम्मान आदि। 13-प्रसिद्ध रचना-दर्द को शब्द मे ढाल कर आई हूँ। एक शिक्षिका के रूप में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने के साथ ही मैं कई समाजिक और साहित्यिक और शैक्षणिक संस्थानों से सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ी हूँ।लेखन के क्षेत्र में आने का मेरा मुख्य उद्देश्य समाजिक बुराईयों के प्रति जनजागरण करना,नारी सशक्तिकरण के सन्दर्भ मे महिलाओं को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना,हिन्दी कविता मे नारी मुक्ति आन्दोलन को नये सिरे से रेखांकित करना,नशा मुक्त समाज बनाना,अशिक्षा,दहेज प्रथा,बाल विवाह,बेरोजगारी,पर्यावरण संरक्षण करना एवं राष्ट्र से जुड़ी समस्याओं को मुखरित करना है।