देवी वन्दना
अरुणोदय की तुम हो दामिनी, हो खण्ड खण्ड प्रभावनी। नभ से धरा तक तुम ही हो, देवी तुम ही जग
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Read Moreपालते हो साँप आस्तीन में, उम्मीद सुधा की रखते हो। बोते हो पेड़ बबूल का, उम्मीद आम की रखते हो॥
Read Moreयुग पुरुष बन जो है खड़ा, गीता का ग्रंथ है हस्त रहा। वन्दन उन्हें कर लीजिये, आज फिर गीता पढ़
Read Moreहमारे बिहारी भैया बिहार से सीधे बम्बई पोस्टिंग पा गये।अब बम्बई जैसा शहर ,एक ही नजर में उनको तो बम्बई
Read Moreमन की आशा से, तृष्णा की कलम से , पानी पे चित्र बनाता हूँ ?कुछ लिखता और मिटाता हूँ ?
Read More“प्रभात….. प्रभात………….” माँ की आवाज तेज होती जा रही थी और प्रभात के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही थी। आज
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