गीतिका/ग़ज़ल *अर्चना पांडा 24/09/201523/09/2015 ग़ज़ल दुनिया में हरसू अँधियारा हरसू ही लाचारी है. पर मैं जग को रोशन करती मुझमें इक चिंगारी है. चाहे गलत Read More
गीत/नवगीत *अर्चना पांडा 23/09/2015 गीत जब आँसू बहते-बहते थक जाते हैं. और स्वयं के रहे-सहे हक जाते हैं. मौन हृदय में कोई भाव उफनता है, Read More
गीतिका/ग़ज़ल *अर्चना पांडा 26/02/2015 ग़ज़ल- भीगे मन का कोना-कोना गाल गुलाबी लब पर लाली तन चाँदी मन सोना। इस होली पी के सँग भीगे मन का कोना-कोना।। मन प्यासा Read More