गीत/नवगीत

गीत

जब आँसू बहते-बहते थक जाते हैं.
और स्वयं के रहे-सहे हक जाते हैं.
मौन हृदय में कोई भाव उफनता है,
तब-तब कोई गीत सुहाना बनता है.

सब हमसे पूछें पर लब चुप रहते हैं.
दिल की बातें हम न किसी से कहते हैं.
जब भावों से मन में बने अजंता है.
तब-तब कोई गीत सुहाना बनता है.

दुःख में ढलकर गीत बहुत मुस्काते हैं.
ग़म में घुलकर भाव ग़ज़ल बन जाते हैं.
पीड़ा बनती रचना की अभियंता है,
तब-तब कोई गीत सुहाना बनता है.

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका