कविता

जागो नौजवान…

सोने का नही है समय, जागो जागो नौजवान
अस्मत खतरे मैं है, संज्ञान लीजिए ।
बंद कर मुट्ठियां, उठाओ हाथ एक साथ
टकरानें को तूफां से,सीने तान लीजिये॥
करो उदघोष जोश से, हिले घरा सकल
हौसले को, आसमां के ठौर मान लीजिये
थर थर कांपे तुम्हे आते देख एक साथ
कुछ ऐसा करने की मन ठान लीजिये॥

करो सूत्रपात नये युग, नये दौर का
जहां अन्याय के लिये, कोई जगहा ना हो
सबको मिले सम्मान, सबके लिये हो मान
किसी के शोषण के लिए,कोई वजहा ना हो
सबको ही मिले न्याय, हर कोई मुस्काए
किसी निर्दोष को, कहीं कोई सजा ना हो
सर हर किसी का हो, गर्व से ऊंचा यहां
सामाजिक न्याय कि झुकी कहीं ध्वजा ना हो॥

भाल से कलंक भ्रष्टता का है, मिटाना अब
संस्कारों की पताका, फिर फहरानी है
हर नौजवान, राम रूप धार लेगा जब
रावणों की नीचता की, खत्म कहानी है
किस में है दम यहां, वेग तेरा रोकने का
जब भी जवानी तूने, चलने की ठानी है
तेरी हुंकार जब उठती हैं, एक साथ
ताकतों की ताकत भी हुई पानी पानी है॥

चल उठ तुझको पुकारती है भारती
लेकर के माटी की सौगंध, बोल जय हिन्द
दिल मे तिरंगे की उडान की, उमंग लिये
हर आस हर सांस सांस, बोल जय हिन्द
हर बूंद बूंद रक्त, तेरे नाम किया मां
दिल की हर एक धडकन, बोल जय हिन्द
नस नस में, लहुं के संग बहे देश प्रेम
रोम रोम चरणो मे नत, बोल जय हिन्द॥
रोम रोम चरणो मे नत, बोल जय हिन्द…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “जागो नौजवान…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    धारदार लेखनी

    • सतीश बंसल

      आपका बहुत बहुत आभार, विभा जी…

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