शिशुगीत

शिशुगीत – ९

१. अखबार

सुबह-सुबह आता अखबार
सबके मन भाता अखबार
दुनियाभर की खबर बताता
दिल भी बहलाता अखबार

२. डोरबेल

जैसे ही कोई आए
इसका स्विच दबाता है
टिंग-टॉंग कर ये हमको
दरवाजे तक लाता है

३. परदा

दरवाजे सा इसका काम
लटका रहता सुबहो-शाम
रंग-बिरंगा या सादा
घर-घर में दिखता ये आम

४. काँच

खिड़की-दरवाजे में फिट
अलग-अलग रंगों में हिट
लिखो चॉक से इसपर जो
पानी से झट जाता मिट

५. कुशन

सोफेपर रखते इसको
उछल-कूद हम करते हैं
बहुत मुलायम होता ये
नहीं चोट से डरते हैं

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “शिशुगीत – ९

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर

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