जीवन आह्वान
हे राम राम हे राम राम हे राम राम रघुनंदन कोटि कोटि प्रणम्य करूँ मैं दुख भय भंजन अविरल अनुपम
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Read Moreकण कण में भगवान यहाँ किंतु इंसानों में इंसान नहीं मिले संवेदना मूक प्राणी मे मानव ही अब दयावान नहीं
Read Moreमनहरण घनाक्षरी छंद विधान – 88,87 प्रथम नमन मेरा ,जन्म दायिनी माँ को है द्वितीय नमन मेरा, ईश सम
Read Moreरहा निहार बसंत धरा को चंदन चंदन सा है तन है सुरभित मनमोहक रूपहृदय है खुला नीलगगनप्राण फूंक रहा निर्झर
Read Moreहे नारीशक्ति ममता व भक्ति भावों की तू है स्वतंत्र अभिव्यक्ति सृष्टि का आधार तू कल्पना का सार तू आदि
Read Moreकण कण में भगवान यहाँ किंतु इंसानों में इंसान नहीं मिले संवेदना मूक प्राणी मे मानव ही अब दयावान नहीं
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