ग़ज़ल
श्मशान की लकड़ियों पर बेईमान आदमी। अपने ही कटवाता ख़ुद कान आदमी।। लाशों को ढोने के मनमाने दाम ले, जिंदों
Read Moreमैं लाल गगरिया पानी की। माटी से बनी कहानी भी।। जिस कुम्भकार ने मुझे गढ़ा। नव स्वेद कणों का पाठ
Read Moreजब से मुँह पर लगा मुसीका। रहता सबको ध्यान उसीका। होठों की मुस्कान छिपाई। यह बचाव की अटल दवाई।। रोग
Read Moreलाल – लाल तरबूजा आया । मैंने जी भर कर वह खाया।। गर्मी का मधु फल तरबूजा। मीठा ऐसा ज्यों
Read Moreहम सभी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि लोटा तो लोटा ही है।यदि लोटे को परिभाषित किया जाए तो
Read Moreचीनी से अच्छा गुड़ खाना। रोगों का घर चीनी माना।। प्रकृति ने दी हमें मिठाई। गाढ़ी भूरी हमने खाई।। उदर
Read Moreटीका सबको लगवाना है। कोरोना से मनुज बचाना है।। साठ साल से ऊपर वाले। खोलें अपने भ्रम के ताले।। बीमारी
Read Moreअभी तक हमने मात्र भगवान, देवी और देवताओं के भक्त ही सुने थे।लेकिन आज भक्त भी विभक्त हो गए हैं।अब
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