सामाजिक *भरत मल्होत्रा 15/05/202020/05/2020 चिंता चिंता मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है। अधिकतर लोग अधिकांश समय चिंता से घिरे रहते हैं। भविष्य में उत्पन्न हो Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 15/05/202031/05/2020 ग़ज़ल पैर ढंकता हूँ तो सर नंगा हो जाता क्यों है सुख की चादर खुदा तू छोटी बनाता क्यों है इस Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/05/202031/05/2020 ग़ज़ल रिन्दों के मुँह पे देखकर ताले पड़े हुए आँसू बहा रहे हैं प्याले पड़े हुए ज़रूरतें कानों में आ के Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 30/04/202031/05/2020 गज़ल यहां से जाने की रट मैंने यूँ ही नहीं लगाई है मतलब की ये दुनिया मुझको कभी रास न आई Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 26/04/202031/05/2020 ग़ज़ल ज़हर घूँट – घूँट उसने जब पिया होगा नाम किसका-किसका जाने तब लिया होगा तू आईना है जो होगा वही Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 19/04/202022/04/2020 ग़ज़ल तितलियों को गुनगुनाना आ गया फूलों को भी मुस्कुराना आ गया देख कर तुमको मुझे ऐसे लगा फिर बहारों का Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 14/04/202025/04/2020 ग़ज़ल इस दश्त-ए-तनहाई में और कोई न था मुझे लगा कि कोई है मगर कोई न था सब झुके हुए थे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 07/04/202025/04/2020 ग़ज़ल उसकी तरक्की तो गई टल जिसने सोचा करेंगे कल मुश्किल से डरना कैसा कोशिश कर निकलेगा हल दिल में जब Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 04/04/202025/04/2020 ग़ज़ल साथ अपने तू यहां से और क्या ले जाएगा दूसरों से जो मिली होगी दुआ ले जाएगा अपनी हस्ती पे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 23/03/202030/03/2020 ग़ज़ल भरोसा था तुझे पहले रहा वो अब नहीं शायद, तेरी उम्मीद पर मैं ही खरा उतरा नहीं शायद, तेरे एहसास Read More