कविता *भरत मल्होत्रा 25/08/2018 कविता रोज़ की तरह आज सुबह भी ले आया हूँ एक खूबसूरत आज मजबूरियों के कत्लखाने में कि उतारकर खाल इसकी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 20/08/201828/08/2018 गज़ल दिल कहूँ दिलबर कहूँ दिलदार दिलरूबा कहूँ, कभी तुम्हें सनम कहूँ कभी तुम्हें खुदा कहूँ हमसफर तू हमकदम तू हमदम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 13/08/201814/08/2018 गज़ल बात कुछ ना थी बवंडर हो गए, महल आलीशान खंडहर हो गए वक्त के हाथों बचा ना कोई भी, दफन Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 08/08/201808/08/2018 लेख : गिरगिट का रंग बदलना कभी-कभी हम लोग कितनी गलत कहावतें बना लेते हैं और मजे की बात ये है कि सदियों तक वो चलती Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 08/08/201818/08/2018 गज़ल कब दीवारों से झाँकता है कोई, मुझको शायद मुगालता है कोई मुड़ के देखा हवा का झोंका था, लगा ऐसे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 01/08/201818/08/2018 गज़ल ज़ुबां पे कैसे आता मेरे इश्क का फसाना, उसे वक्त ही नहीं था जिसे चाहा था सुनाना मेरे साथ घूमते Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 25/07/201818/08/2018 गज़ल चाँद माथे पे, निगाहों में सितारे लेकर, रात आई है देखो कैसे नज़ारे लेकर सुबह तक याद ना करने की Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 21/07/201822/07/2018 ग़ज़ल दिल कहूँ दिलबर कहूँ दिलदार दिलरूबा कहूँ कभी तुम्हें सनम कहूँ कभी तुम्हें खुदा कहूँ हमसफर तू हमकदम तू हमदम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 17/07/201817/07/2018 गज़ल करम करे न करे हमपे ये है काम उसका दिल पुकारता है हर घड़ी बस नाम उसका दस्तक जब भी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 13/07/201815/07/2018 गज़ल तू मेरे दिल, मेरी जां, मेरे ईमान में है हमसा आशिक न तेरा कोई जहान में है दिखाई देता है Read More