गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 24/05/201825/05/2018 गज़ल एक-एक कतरे में तुम एक समंदर रखना अश्कों को लेकिन अपने कहीं अंदर रखना खुशियाँ बाँट देना सारी अपने यारों Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 22/05/2018 प्रेम प्रेम प्रतीक है संसार में ईश्वरीय सत्ता का प्रेम आधार है इस समग्र सृष्टि का प्रेम विश्वास है मानव में Read More
धर्म-संस्कृति-अध्यात्म *भरत मल्होत्रा 22/05/2018 लेख श्रद्धा मानव को मिले सबसे कीमती उपहारों में से एक है। श्रद्धा हमारे जीवन का मूल आधार है या यूँ Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 22/05/2018 गज़ल यूँ महफिल से न निकाल हमें इससे अच्छा है मार डाल हमें =================== यहां से उठ के कहां जाएँगे सता Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 17/05/201818/05/2018 लेख : जीवन यात्रा जीवन एक यात्रा है, सतत जारी रहने वाली यात्रा। अब यात्रा है तो कठिनाइयाँ तो आएँगी ही। कहीं समतल, सपाट Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 17/05/2018 गज़ल न उरूज़ साथ जाए न जवाल साथ जाए आखिरी सफर में बस आमाल साथ जाए ========================== जीते जी तो Read More
कविता *भरत मल्होत्रा 15/05/2018 कविता जब भी सोचता हूँ तुम्हें मेरे ख़यालों से उठने लगती है वही जानी-पहचानी गंध जो साँसों से होते रोम-रोम से Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 12/05/201816/05/2018 गज़ल अक्लमंदों से ज्यादा अक्ल उस जाहिल में थी क्या बला की होशमंदी तौबा उस गाफिल में थी जानने की कोशिशें Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 09/05/2018 गज़ल जीवन मेरा बस एक ढलती शाम होकर रह गया अपने ही मैं शहर में गुमनाम होकर रह गया ============================ खुदा Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 05/05/2018 लेख शब्दों में बहुत शक्ति है। शब्द मरते हुए व्यक्ति को संजीवनी प्रदान कर सकते हैं तो किसी स्वस्थ व्यक्ति के Read More