गीत/नवगीत *भरत मल्होत्रा 17/02/2018 गीत अच्छे हैं इंसान यहां सब किसीको कम ना आँको तुम औरों को बुरा कहने से पहले ज़रा खुद में झाँको Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/02/201818/02/2018 गज़ल खो गई कहीं धरोहर सारी संस्कृति का नाश हुआ भूल के जिम्मेदारी आदमी इच्छाओं का दास हुआ पौ फटने से Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 09/02/201810/02/2018 गज़ल आगाज़ तो हो जाए अंजाम तक ना पहुंचे जब तक मेरी कहानी तेरे नाम तक ना पहुंचे तेरे आने से Read More
गीत/नवगीत *भरत मल्होत्रा 03/02/201813/02/2018 गीत गज़ल निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है अकेले बिना बात के मुस्कुराना मुहब्बत नहीं है Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 03/02/2018 लेख चिंता मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है। अधिकतर लोग अधिकांश समय चिंता से घिरे रहते हैं। भविष्य में उत्पन्न हो Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 02/02/201813/02/2018 गज़ल सच की राह पर हम चल रहे हैं जलने वाले तो बस जल रहे हैं रहे गाफिल तो डस लेंगे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 28/01/201829/01/2018 गज़ल क्या कहा ना जाने गुल को बाद-ए-सबा ने कि गूँज उठे हैं सूनी वादियों में तराने आज की दुनिया की Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 27/01/201829/01/2018 लेख – आवश्यकता है दृष्टि को बदलने की हमारे जीवन की सबसे बड़ी विडंबना ये है कि पसंद है वो प्राप्त नहीं होता और जो प्राप्त है वो Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 27/01/201829/01/2018 गज़ल नहीं होता जो किस्मत में उसी से प्यार करता है, ना जाने क्यों खता इंसान ये हर बार करता है Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 25/01/2018 लेख जीवन जीने के दो ही मार्ग हैं, प्रथम लोगों की बातों पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहो Read More